आओ खेलें हम होली…

आओ खेलें हम होली…

गिले-शिकवे भूलकर दोस्तों,
जम करके खेलो होली।
रंग लगाए न लौटे ये होली,
दिल अपना वो खोली।
आओ खेलें हम होली।
कोरी बचे न उसकी चुनरिया,
कोरी बचे न वो चोली,
आओ खेलें हम होली।

बैठो न घर में, रोना न रोओ,
एक दूजे में आके तू खोओ।
खाओ यहाँ भाँग की गोली,
आओ खेलें हम होली।
रंग लगाए न लौटे ये होली,
दिल अपना वो खोली।
आओ खेलें हम होली।
कोरी बचे न उसकी चुनरिया,
कोरी बचे न वो चोली,
आओ खेलें हम होली।
गिले-शिकवे भूलकर दोस्तों,
जम करके खेलो होली।
कोरी बचे न वो चोली।

आँखों ही आँखों में रंग चढ़ाओ,
प्यार-मोहब्बत का हाथ बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा करो तू ठिठोली,
आओ खेलें हम होली।
रंग लगाए न लौटे ये होली,
दिल अपना वो खोली।
आओ खेलें हम होली।
कोरी बचे न उसकी चुनरिया,
कोरी बचे न वो चोली,
आओ खेलें हम होली।
गिले-शिकवे भूलकर दोस्तों,
जम करके खेलो होली।
कोरी बचे न वो चोली।

आज चढ़ी है सब पे जवानी,
करना न कोई देखो नादानी।
आई देखो मस्तों की टोली।
आओ खेलें हम होली।
रंग लगाए न लौटे ये होली,
दिल अपना वो खोली।
आओ खेलें हम होली।
कोरी बचे न उसकी चुनरिया,
कोरी बचे न वो चोली,
आओ खेलें हम होली।
गिले-शिकवे भूलकर दोस्तों,
जम करके खेलो होली।
कोरी बचे न वो चोली।

बहने लगी अब रंगों की गंगा,
धरती-गगन हुआ रंग-बिरंगा।
आके भरो अपनी झोली,
आओ खेलें हम होली।
रंग लगाए न लौटे ये होली,
दिल अपना वो खोली।
आओ खेलें हम होली।
कोरी बचे न उसकी चुनरिया,
कोरी बचे न वो चोली,
आओ खेलें हम होली।
गिले-शिकवे भूलकर दोस्तों,
जम करके खेलो होली।
कोरी बचे न वो चोली।

रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)

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