उत्तर प्रदेश सरकार की गोपनीयता भंग कर रहे केके बाबू

उत्तर प्रदेश सरकार की गोपनीयता भंग कर रहे केके बाबू

क्या गोपनीय विभागों में भी रखे जा सकते हैं आउटसोर्सिंग के कर्मचारी?

डीएम—एसपी का कैम्प कार्यालय जिले का होता है गोपनीय विभाग

शासन की गोपनीय फाइलें भेजी जाती हैं कैम्प कार्यालय

29 अगस्त 2023 को शासन ने जारी किया था आदेश, बाहरी व्यक्तियों पर लगायी थी रोक

संदीप पाण्डेय
रायबरेली। 29 अगस्त 2023 को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा एक आदेश प्रदेश के सभी जिलों में भेजा गया और कहा गया कि सरकारी कार्यालय में बाहरी व्यक्तियों को न रखा जाय, क्योंकि यह विभागों की गोपनीयता को भंग करते हैं। आदेश विशेष सचिव उत्तर प्रदेश शासन के द्वारा जारी किया गया जिसमें कहा गया कि पत्रांक संख्या 3163/12 एल (4)/2023 जिसके अंतर्गत कहा गया कि शासन के संज्ञान में आया है कि प्रदेश के मंडल, कलेक्ट्रेट या तहसील आदि कार्यालय में सरकारी कर्मचारी द्वारा बाहर के व्यक्तियों को शासकीय कार्य करवाने हेतु न रखा जाय। ऐसे व्यक्तियों द्वारा भ्रष्टाचार और अनियमिताएं की जाने की शिकायतें लगातार शासन को प्राप्त हो रही हैं। इसके संबंध में यह निर्देशित किया गया है कि मंडल कलेक्ट्रेट तहसील कार्यालय में बाहरी व्यक्तियों को किसी भी दशा में न रखा जाय।

24 घण्टे खुले रहते हैं गोपनीय विभाग
उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का एक गोपनीय विभाग होता है जो मुख्यत: उनके आवासों पर संचालित होता है और जो 24 घंटे खुले होते हैं, क्योंकि कब, कहां और किस तरह की घटना जिले में घट जायं, उसको लेकर यह कार्यालय लगातार कार्य करते हैं। शासन द्वारा जब भी कोई गोपनीय पत्र भेजा जाता है तो इन्हीं कार्यालय में भेजा जाता है, क्योंकि यह गोपनीय विभाग होते हैं और यहां पर शासन की गोपनीय फाइल आती है। इन विभागों में सरकारी कर्मचारी होना चाहिए, क्योंकि गोपनीय फाइलों की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर होती है और वह फाइलें जिलाधिकारी या संबंधित अधिकारी के ही संज्ञान में होती हैं।

रिटायरमेंट होने के बाद भी क्यों कैम्प कार्यालय में जमे हैं केके बाबू?
आखिर ऐसी क्या वजह है कि जिलाधिकारी के कैंप कार्यालय में रिटायरमेंट होने के बाद भी कुर्सी का मोह नहीं त्याग पर हैं केके बाबू। सूत्रों की मानें तो गोपनीय विभाग की कुर्सी पर बैठकर इनके द्वारा अकूत संपत्ति बनाई गई है। ठेकेदारों और बिजनेस मैन व्यक्तियों से जिलाधिकारी के साइन करवाने की एवज में मोटी रकम वसूली जाती है। यही नहीं, एक सरकारी कर्मचारियों ने नाम न छापने की तर्ज पर बताया कि इनके द्वारा बड़े व्यवसायी और बिल्डरों को जिलाधिकारी का धौंस दिखाकर अपने कुछ गुर्गों के माध्यम से वसूली भी करवाई जाती है।

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