JAUNPUR NEWS : टीबी शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में करता है हस्तक्षेप: डा. हरिनाथ यादव
JAUNPUR NEWS : टीबी शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में करता है हस्तक्षेप: डा. हरिनाथ यादव
श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में विश्व तपेदिक दिवस पर गोष्ठी आयोजित
शुभांशू जायसवाल
जौनपुर। नगर के नईगंज तिराहा स्थित श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में विश्व तपेदिक दिवस पर गोष्ठी का आयोजन हुआ जहां वरिष्ठ न्यूरो साइकियाट्रिक डा. हरिनाथ यादव ने बताया कि आज विश्व क्षय रोग दिवस ‘एस, वी कैन इण्ड टीबी’ थीम के तहत पूरे देश में मनाया जा रहा है।
दुनिया में तपेदिक (टीबी) के कुल मामलों और मौतों में से एक-चौथाई से अधिक भारत में होते हैं। टीबी शारीरिक, मनोसामाजिक और आर्थिक सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में हस्तक्षेप करता है। मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को दो पहलुओं में अलग करके समझा जा सकता है। एक वह प्रभाव है जो बीमारी के निदान के साथ आता है। कलंक और सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान, जबकि दूसरा दवा-प्रेरित मनोविकृति और दुष्प्रभाव है।
डा. यादव ने बताया कि जर्नल बीएमजे में प्रकाशित 2018 की केस रिपोर्ट में एक 25 वर्षीय पुरुष का मामला प्रस्तुत किया गया जिसका मल्टीड्रग-रेसिस्टेंस ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर-टीबी) का इलाज चल रहा था। उन्होंने ड्रग-प्रेरित मनोविकार विकसित किया। मनश्चिकित्सीय लक्षणों को एण्टी टीबी दवाओं के रूप में वर्णित किया गया था जिन्हें उपचार करने वाले डॉक्टरों द्वारा विधिवत वापस ले लिया गया था और अन्य दवाओं के साथ पूरक किया गया था।
हालांकि पीड़िता में मनोरोग के लक्षण बने रहे और उसने अस्पताल में आत्महत्या कर ली। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मनोरोग या अन्य लक्षणों के लिये भर्ती रोगियों में अस्पताल के अधिकारियों द्वारा निवारक रणनीति अपनाई जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि एमडीआर-टीबी में उपयोग की जाने वाली साइक्लोसेरिन जैसी कुछ दवाओं के निश्चित मनोवैज्ञानिक साइड-इफेक्ट्स के अलावा, अन्य ड्रग प्रेरित साइड इफेक्ट्स भी हैं जो मानसिक विकारों को बढ़ाते हैं। दवा प्रेरित दुष्प्रभावों के अलावा टीबी से जुड़ा कलंक अक्सर रोगियों के साथ भेदभाव का कारण बनता है जिसके परिणामस्वरूप नौकरी छूट जाती है। सामाजिक बहिष्कार और अन्य कारणों के बीच अंतर-व्यक्तिगत संबंधों में अशांति होती है जो मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
डा. हरिनाथ यादव ने बताया कि जर्नल ऑफ़ फ़ैमिली मेडिसिन एण्ड प्राइमरी केयर में प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन में लगातार 100 ऐसे मामलों का विश्लेषण किया गया जिनमें तपेदिक का निदान किया गया था और फरवरी 2015 से नवम्बर 2015 तक मनोरोग विभाग को भेजा गया था। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि 74 प्रतिशत रोगियों में मनोरोग के लक्षण मौजूद थे।
अध्ययन में कहा गया है कि लक्षण विभिन्न कारणों से हो सकते हैं जिनमें बीमारी की पुरानी प्रकृति, लम्बा और महंगा उपचार, टीबी से जुड़ा सामाजिक कलंक और बांझपन, दर्द और सांस फूलना जैसी चिकित्सा समस्यायें शामिल हैं। कार्यस्थल से बार-बार परहेज करना, जो आर्थिक रूप से अधिक तनाव में जोड़ता है। इस अवसर पर अस्पताल के स्टाफ व मरीज सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
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