Jaunpur News : बरहपुर घाट पर महापर्व छठ को लेकर उमड़ा जनसैलाब
श्रद्धालुओं ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य
कृष्णा सिंह
पतरही, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र के बरहपुर घाट पर महापर्व छठ को लेकर उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब श्रद्धालुओं ने बुधवार को डूबते सूर्य को दिया पहला अर्घ्य और गुरुवार की सुबह उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की बता दें कि व्रती महिलाएं सूर्य को अर्ध्य देने और पुत्र के लम्बे आयु एवं अपनी अपनी लम्बी मनोकामना को लेकर गीत गाते बरहपुर घाट पर पहुंची। व्रतियों के रंग-बिरंगे परिधान और भक्तिमय लोकगीत कदम-कदम पर शांति का संदेश देते रहे। बड़ी संख्घ्या में लोगों ने बरहपुर घाट पर ही भगवान भास्घ्कर को अर्घ दिया। घाटों पर साफ-सफाई से लेकर आकर्षक रोशनी की व्यवस्था की गई थी।
पूरे घाट पर सुशील सिंह बरहपुर द्वारा स्वच्छता का विशेष ध्घ्यान रखा गया था और चौकी प्रभारी त्रिवेणी सिंह द्वारा महापर्व छठ को देखते हुये श्रद्धालुओं के सुरक्षा के लिए बरहपुर सहित क्षेत्र के सभी घाटों पर पुलिसकर्मी तैनात किये गए थे। दरअसल लोक आस्था का यह पर्व इसलिए तो अनूठा है कि इसमें प्रकृति की पूजा, प्राकृतिक चीजों के व्यापक प्रयोग की कुशलता, शिक्षा और स्वास्थ्य की सीख, स्वच्छता, संस्कृति, भाईचारा और आस्था का बेजोड़ मेल है। प्राचीन कथा के मुताबिक प्रियंवद नाम का एक राजा था। उनकी शादी मालिनी नाम की स्त्री से हुई। शादी के सालों बाद भी प्रियंवद को संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इस वजह से वह बहुत दुखी रहा करते थे।
उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से विचार विमर्श कर यज्ञ करवाने का निश्चय किया। यज्ञ की आहुति की खीर को महर्षि कश्यप ने राजा प्रियंवद की पत्नी को दिया और उस खीर के प्रभाव से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन दुख की बात यह थी कि वह मरा हुआ पैदा हुआ। पुत्र वियोग में जब राजा ने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया तो तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई और उन्हें पुत्र को जीवित करने के लिए छठ व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से राजा प्रियंवद का पुत्र जीवित हो गया। तब से ही छठ पूजा मनाई जा रही है। बताया जाता है कि यह ही छठी माता हैं। सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से इन्हें छठी मैया कहकर पुकारा जाता है। छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं। गौरतलब हो कि क्षेत्र के कोपा, दुधौड़ा, बिसौरी, पड़रक्षाकोट, चांदेपुर में भी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ महापर्व छठ मनाया गया।
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