जायसवाल समाज कलवार, कलाल, कलार के उत्थान का मार्ग
जायसवाल समाज कलवार, कलाल, कलार के उत्थान का मार्ग
मुम्बई। कलचुरि वंश की आबादी करीब 8-10 करोड़ मानी जाती है, इसका मतलब है कि भारत की आबादी का करीब 7% कलचुरि हैं अर्थात सौ में हर सातवाँ भारतीय कलचुरि है। इतने विशाल जनसंख्या के हितों के लिए नीतिगत और मजबूत रणनीति की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार द्वारा हमें ओबीसी आरक्षण के 27% भागीदारी में सम्मिलित किया गया है, लेकिन अभी तक आरक्षण का एक प्रतिशत लाभ सजातीयों को नही मिला है। अभी तक कई राज्यों में कलवार कलाल कलार को आरक्षण नहीं मिला है, जिससे सजातीय युवाओं को शिक्षा, नौकरी और व्यवसाय में आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। युवा यदि किसी तरह शिक्षा प्राप्त कर भी ले रहे हैं तो उन्हें आरक्षण के तहत अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है, युवा हताश है, जिन्हे बड़े पद मिलना चाहिए वो छोटी नौकरी या छोटा व्यवसाय करने को मजबूर है। आज सर्वाधिक आवश्यकता है कि उन्हें नौकरी या व्यवसाय मिले। आप महाराष्ट्र को ही लें तो यहाँ पर कलाल कलार को आरक्षण है लेकिन कलवार को अभी तक आरक्षण नहीं है यदि देखे तो हर साल पांच सौ नौकरी मिल सकती है, हर साल सौ लोगों को व्यवसाय के लिए ओबीसी आरक्षण के तहत कम ब्याज पर लोन मिल सकता है। भूमि आवंटन मे भी आरक्षण मिल सकता है। बड़े उद्योग के लिए भूमि मिल सकती है लेकिन हम न तो जानते हैं और न जानना चाहते हैं कि आरक्षण का कितना महत्व समाज के विकास में मिल सकता है। अगर इस आंकड़े को दस साल के परिच्छेद मे देखेगे तो पांच हजार परिवार खुशहाल हो सकता है, उनका जीवन स्तर उठ सकता है। एक सम्बृद्ध कलवार कलाल कलार समाज हो सकता है। अभी तक संगठनों द्वारा स्थानीय स्तर पर सजातीयों की जानकारी उपलब्ध नहीं है। मुम्बई यैसे महानगर में ही करीब दो लाख सजातीय हैं, जिसमें युवाओं की संख्या करीब 50,000 होगी। हमें एक ठोस रणनीति पर काम करने की आवश्यकता है। केवल खुद के महिमा मंडन से काम नही चलेगा।
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