600 वर्ष से नहीं मनायी जाती होली

600 वर्ष से नहीं मनायी जाती होली

होली खेलने के दौरान धोखे से की गयी थी हत्या

जौनपुर के शासक शाह शर्की की सेनानी ने बोला था हमला

रवीन्द्र कुमार
डलमऊ, रायबरेली। होली का त्यौहार भले ही देश व समाज के कोने कोने में खुशियां लेकर आता हो लेकिन डलमऊ सहित आस—पास के लोगों के लिए यह त्यौहार करीब 600 वर्षों से एक टीस छोड़ जाता है। इसका कारण है यहां का इतिहास जिसकी एक घटना ने क्षेत्र के लोगों को शोकमग्न होने के लिए मजबूर कर दिया। करीब 600 साल गुजर जाने के बाद भी इस क्षेत्र की जनता उस घटना को भूल नहीं सकी। इसके कारण क्षेत्र में होली का त्यौहार 3 दिन का सूदक मानने के बाद ही किसी शुभ दिन मनाया जाता है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि इसी दिन यहां के जनप्रिय प्रजा वत्सल राजा डल की हत्या शाह शर्की की सेनाओं द्वारा कर दी गई थी। हत्या उस समय की गई थी जब राजा अपनी प्रजा के साथ होली के रंग में सराबोर थे। राजा डल सूर्यवंशी परंपरा के अंतिम राजा के रूप में माने जाते हैं। इतिहास की यह हृदय विदारक मार्मिक घटना ने डलमऊ का इतिहास ही बदल कर रख दिया। उनका शासन कोई 1402 ई. से 1421 ईस्वी तक माना जाता है। घटना के पीछे एक किदवंती है कि बाबर सैयद की पुत्री सलमा जो रूपवती थी। वह अपने सिपह सलाहकारों के साथ जलमार्ग से गंगा के रास्ते डलमऊ क्षेत्र में शिकार खेलने आई थी।
उधर राजा डल अपने अंग रक्षकों के साथ आखेट पर निकले थे। आखेट के दौरान ही प्रतापगढ़ जनपद के कड़े नामक स्थान पर दोनों की आंखें चार हुई थी। यही यह क्षण था जिसने डलमऊ का भाग्य बदलने का काम किया। सलमा की खूबसूरती ने राजा को मोहित कर दिया। उन्होंने सलमा से मिलने का नाकाम प्रस्ताव भी भेजा जिसके बाद राजा डल अपने अंगरक्षकों के साथ डलमऊ वापस आ गए। राजा ने अपने महल वापस आकर अपने सेनापति के माध्यम से आमंत्रण पत्र भेजा। आमंत्रण पत्र पाकर सलमा क्रोध की ज्वाला में जल उठी। उसने राजा डल के कृत्य कार्य को धृष्टता मानते हुए बदला लेने की ठान ली। वह फौरन अपने लाव लश्कर के साथ जौनपुर के लिए लौट पड़ी और उसने आपबीती जाकर बाबर सैयद को बताई। बाबर सैयद ने इस बाबत जौनपुर के बादशाह इब्राहिम शाहशर्की से बात की। शाह शर्की ने राजा के कार्य को अपना अपमान समझा और उसने राजा से बदला लेने की ठान ली। शाहशर्की यह भली-भांति जानता था कि वह आमने सामने से युद्ध में राजा से पार नहीं पा सकता। अतः उसने क्षेत्र में जासूस लगा दिए गुप्तचर पल-पल की सूचना शाहशर्की को भेजने लगे।
इस कार्य में डलमऊ के ही जुम्मन व जुनैद नाम के दो नपुंसकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शाह शर्की को सुझाया कि राजा से बदला लेने का सबसे सुनहरा अवसर होली के दिन रंग खेलने के समय का है, क्योंकि उस दिन राजा प्रजा के साथ रंग में सराबोर हो जाते हैं और अधिकांश फौज होली की छुट्टी पर चली जाती है। दोनों ही नपुंसकों की सलाह पर शाह शर्की की सेनाओं ने लुक—छिप कर राजा और प्रजा सभी पर आक्रमण कर दिया। राजा और प्रजा सभी निहत्थे थे। युद्ध नियमों के अनुसार तब निहत्थों पर वार नहीं किया जाता था लेकिन शाह शर्की की सेनाओं ने ऐसा युद्ध करके नियमों को कलंकित कर दिया।
फिर भी राजा हिम्मत नहीं हारे उन्होंने रंग में सराबोर होते हुए डलमऊ के पास सुरजूपुर में शाहशर्की की सेनाओं से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसा भी माना जाता है कि शाहशर्की की सेनाओं के साथ सलमा भी मौजूद थी। यह राजा की मृत्यु के बाद उनका सिर लेकर भाग निकली जबकि धड़ सुरजूपुर के पास ही रह गया। वही आज भी राजा की विखंडित प्रतिमा के रूप में उनकी पूजा की जाती है। सदियां गुजर गईं तब से अब तक सावन महीने में प्रत्येक बुधवार को उस पवित्र स्थल पर राजा डलचंद्र की स्मृति में मेला लगता है।

इन गांव में होली पर नहीं खेला जायेगा रंग
राजा डल की स्मति में डलमऊ क्षेत्र के इन गांव में होली के दिन रंग नहीं खेला जाएगा। इनमें डलमऊ ग्राम पंचायत के 27 मजरे पूरे वल्ली, नेवाजगंज, पूरे बघेलान, गुलाब राय, नाथ खेड़ा, पूरे बिंदा भगत, पूरे रेवती सिंह, पूरे अंबहा, बबुरा, मुराई बाग, देवली, पूरे कोहली, मोहद्दीनपुर, अफताब नगर, मखदुमपुर, बलभद्रपुर, पूरे शेखन, मुर्शिदाबाद, दरबानीहार, सदलापुर, ढेलहा, भीमगंज, दीनग़ज, शिवपुरी, पूरे गुरुबक्स, पूरे भवानी, कोरौली दमां, सुरजूपुर, पूरे पासिंन, पूरे कोदऊ, पूरे डेरा, शोभवापुर, ठाकुरद्वारा, पूरे विजयी, पुरे देवीबक्स आदि सहित 80 गांव शामिल हैं।

29 को खेली जायेगी डलमऊ में होली
3 दिन का शोक मानने के पश्चात 29 मार्च को डलमऊ नगर सहित 27 पुरवों में होली खेली जाएंगी। इस दौरान प्रशासन ने होली के त्यौहार को सकुशल संपन्न कराने के लिए पहले ही कमर कस ली है। अराजक तत्वों पर विशेष नजर रखी जाएगी।

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