फर्जी अस्पतालों पर अंकुश लगाने में गाजीपुर स्वास्थ्य विभाग नाकाम

फर्जी अस्पतालों पर अंकुश लगाने में गाजीपुर स्वास्थ्य विभाग नाकाम

उग्रसेन सिंह
जखनिया, गाजीपुर। जनपद में कई अस्पतालों में मरीजों के मरने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग का महकमा मौन है। वहीं जब कहीं पर भी मौत या ऑपरेशन की वजह से स्थिति गंभीर होती है तो आनन-फानन में स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई के नाम पर मुकदमा और अस्पतालों का लाइसेंस कैंसिल करने की कार्रवाई पूरी करने के बाद वापिस उसे ठंडे बक्से में डाल दिया जाता है जिससे हर वर्ष कहीं न कहीं यह अप्रशिक्षित अस्पताल संचालक फर्जी डॉक्टर जो अपनी डिग्री हाईस्कूल पास, इंटर पास या बी०ए० बताते हैं एक या दो माह प्रेक्टिस करके बड़े-बड़े हॉस्पिटल चलाते हैं जहां बोर्ड पर कुछ पहचान वाले चिकित्सकों का नाम और उनकी डिग्री अंकित करवाकर उन्हीं के नाम पर अस्पताल का संचालन करते हैं।

डॉक्टरों को कमीशन की लालच बनी रहती हैं जिससे उनको भी कोई विरोध नहीं होता हैं जबकि न रजिस्ट्रेशन में उनका नाम दिखाया गया है और न ही उस अस्पताल का रजिस्ट्रेशन है जहाँ उनके नाम का बोर्ड लगाकर चलाया जा रहा हैं जहाँ मरीजों के मौत के बाद बोर्ड बैनर हटा लिया जाता हैं जिससे उनका नाम मुकदमा से वंचित हो जाता हैं जो तय कमीशन की धनराशि के हिसाब से लगभग दर्जनों जगह अपना नाम अंकित करवा लेते हैं। यहां से उनके नाम का कमीशन मिलता रहता हैं।

मरीज चाहे मरें या जिये, उनसे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन सोचने की बात तो यह है कि ज्यादातर अस्पताल के संचालक का कहना है कि हमने अस्पताल चलाने के लिए फायर विभाग में रजिस्ट्रेशन करा लिया है। सोचिए जिस स्वास्थ्य रक्षक कहे जाने वाले डॉक्टर को यह नहीं पता है कि अस्पताल चलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना चाहिए या फायर विभाग में वहाँ मरीजों के अंगों और इलाज की क्या जानकारी होगी, आप खुद समझ सकते हैं।

बात अलग है कि अस्पताल चलाने के लिए फायर विभाग की भी अनुमति होनी चाहिए जो हर स्कूल और बड़ी बिल्डिंग के लिए अनिवार्य हैं लेकिन पहले स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रेशन होना अनिवार्य है जिससे आप खुद समझ सकते हैं। क्या स्थिति हैं प्राइबेट अस्पतालों की? इस तरह का एक—दो नहीं, बल्कि जनपद में कई अस्पताल संचालित हो रहे हैं और जब किसी समाजसेवियों द्वारा इसको लेकर आवाज उठाया जाता है।

उन्हें या बाहुबली का फोन करवाकर डराया धमकाया जाता है या फिर शासन प्रशासन में अच्छी पकड़ रखने वाले लोगों से कार्रवाई का धौस जमा कर उन्हें डराया—धमकाया जाता है और जब शासन द्वारा स्वास्थ्य विभाग के किसी छोटे-बड़े कर्मचारी द्वारा जांच करने के लिए टीम बनाकर भेजी जाती है तो बड़े राज्यमंत्री या शासन में अच्छी पकड़ वाले से उच्च अधिकारियों का दबाव बनाया जाता है।

क्या ऐसे अपराधों के लिए माननीय उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का जीरो टॉलरेंस का अभियान सफल साबित होगा? क्या सभी लोग इसलिए मौन रहते हैं कि जो मरीज गलत ढंग से इलाज या ऑपरेशन करने पर मर गया, वह हमारे परिवार का नहीं हैं, नहीं जरा सोचिए उन मासूम बच्चों का जो माँ के देखने से पहले ही दम तोड़ देते हैं जिसकी आखरी उमीद होती है। वह सन्तान जो दम तोड़ देती हैं। वह माँ जो अपने दो बच्चों को छोड़ इन मौत के सौदागरों की लालच की भेंट चढ़ जाती हैं, उनके आशुओं का आखिर कौन जिम्मेदार हैं जहाँ बहरियाबाद में मरीज के मौत के बाद भी खुशी परी मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, शामा हॉस्पिटल सहित कई फर्जी अस्पताल आज भी धडल्ले से चल रहे हैं।

जखनियां में विजय हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन नहीं होने पर भी ऑपरेशन कर जच्चे-बच्चे दोनों की जिन्दगी लेने के वावजूद आज तक आस-पास के फर्जी अस्पतालों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई जहाँ धड़ल्ले से ऑपरेशन किया जा रहा हैं। इनके पीछे किसका हाथ हैं जो आज भी बेखौफ हैं। कब चलेगा इन पर बाबा का जीरो टॉलरेंस का डण्डा? कब होगी कार्यवाही जरा आप भी सोचिए कि हमें अपनों की ज़िन्दगी सुरक्षित रखने के लिए क्या करना चाहिये?

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