साढ़े चार सौ साल पुराना इ​तिहास | Watch this Video

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रख-रखाव के अभाव में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा जौनपुर का ऐतिहासिक शाही पुल
नाव बन्द होने से नदी पार न कर पायी महिला के रोने पर अकबर ने 1564 में बनवाया है यह पुल
विश्व का एकमात्र अनूठा है यह पुल, मगर उपेक्षित होने से यहां नहीं आते कोई पर्यटक

आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर जो शिराज-ए-हिन्द एवं यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि के नाम से विख्यात है, भारत के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। यह शहर कभी बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा था जब यह उजड़ा था तो एक बार फिर शर्की काल में समृद्धिशाली राजवंश ने इसे सजाया। इतना ही नहीं, जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा का विस्तार दूर-दूर तक फैला दिया।
ऋषि-मुनियों ने तपस्या करके इस भूमि को तपस्थली बनाया तो बुद्धिष्टों ने इसे बौद्ध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिशील हुई जिसे भारतवर्ष का मध्य युगीन पेरिस तक कहा गया है।

नगर को दो भागों में विभाजित करने वाला गोमती नदी पर बने ऐतिहासिक शाही पुल का निर्माण मुगल शासक अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई. में मुइन खानखाना ने करवाया था। यह भारत में अपने ढंग का अनूठा पुल है जिसकी मुख्य सड़क पृथ्वी तल पर ही निर्मित है जबकि पुल मुख्य सड़क से हमेशा ऊंची रहती है। आपको बता दे पुल कि चौड़ाई लगभग 26 फीट है जिसके दोनों तरफ 2 फीट 3 इंच चौड़ी मुंडेर है। दो ताखों के संधि स्थल पर गुमटियां निर्मित हैं। पहले इन गुमटियों में दुकानें लगा करती थीं। पुल के मध्य में चतुर्भुजाकार चबूतरे पर एक विशाल सिंह की मूर्ति है जो अपने अगले दोनों पंजों को हाथी के पीठ पर सवार है।

अतीत की मानें तो एक बार अकबर बादशाह जौनपुर आये ​थे तो शाही किले में निवास के दौरान वह गोमती नदी में नौका विहार को गये जहां उसने देखा कि एक औरत चादर में मुंह छिपाये रो रही थी। जब उससे उसके रोने का कारण पूछा गया तो उसने बताया कि वह गोमती के उस पार से सूत बेचने आई थी लेकिन शाम को देर हो जाने के कारण नाव वाला चला गया। वह अपने दो छोटे बच्चों को घर छोड़कर आई थी जो अब अकेले हैं। अब वह किस हाल में होंगे, यही सोचकर रो रही हूं। इससे द्रवित होकर बादशाह अकबर ने तुरन्त उसे अपने नाव पर बैठाकर नदी उस पार पहुंचा दिया। साथ ही मुनीन खानखाना को आदेश दिया कि यहां गोमती नदी पर एक पुल बनाया जाय जो जौनपुर के इस पार को उस पार से जोड़े और पुल ऐसा मजबूत बने कि कयामत तक टिका रहे। शाही किले के पास पुल का निर्माण आसान नहीं था, क्योंकि उस समाज के लोगों का कहना था कि यहां पर गोमती में पानी भी अधिक रहता है। यहां पर एक ऐसा कुण्ड भी है जिसकी गहराई किसी को मालूम नहीं लेकिन बादशाह का आदेश था, इसलिए यह तय किया गया कि गोमती का रुख मोड़ना होगा और सबसे पहले 5 ताख का दक्षिणी पुल बनाकर गोमती का रुख मोड़ दिया गया। इस पुल के निर्माण पर पत्थर, सीसा और लोहे की शहतीरों का इस्तेमाल अधिक किया गया है। इस 5 ताख के दक्षिणी पुल पद एक पत्थर लगवा दिया जिसके अनुसार इसका निर्माण 1564 ई. में हुआ। यह पत्थर आज भी लगा हुआ है जिसमें पर्शियन भाषा में इबारत लिखी है जिसे मुश्किल से पढ़ा जा सकता है। इस 5 ताख के पुल की हालत मजबूती की नजर से तो बढ़िया है लेकिन देख-रेख की कमियां महसूस की जा सकती हैं।

जगह’जगह पीपल इत्यादि के पेड़ निकल आये हैं और सड़क के खम्भों को लगाते समय इसकी सुन्दरता खराब न हो, इस बात का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। इस 5 ताख वाले पुल के नीचे अब नदी नहीं बहती, इसलिये वहां जंगल जैसा रूप उभरकर आ गया है जहां सफाई और सुन्दरता का ध्यान बिल्कुल भी नहीं दिया जा रहा है जबकि इस स्थान पर भी बढ़िया घाट बनाकर पर्यटकों सहित जौनपुरवासियों को इस पुल को करीब से देखने योग्य बनाया जा सकता है। इस 5 ताख के पुल के बाद 10 ताख का वह पुल बनाया गया जिसके नीचे नये मार्ग से आज गोमती नदी बह रही है। इस पुल के निर्माण में इसकी सुन्दरता और मजबूती पर विशेष ध्यान दिया गया है जिससे यह बहुत ही सुंदर और विराट बन सका है। इस पुल की चौड़ाई 26 फीट है। पुल के हलके स्तम्भों पर 28 गुमटियां बनी हुई हैं जिनमें से 26 गुमटी का निर्माण ओमनी नामक जिलाधीश ने करवाया था। इन गुमटियों से इस पुल की सुन्दरता और भी बढ़ जाती है। 5 ताख के दक्षिणी पुल की लम्बाई 176 फीट और उत्तरी 10 ताख वाले पुल की लम्बाई 353 फीट है। यह दुनिया का पहला पुल है जिसकी सतह नगर की सड़क के धरातल के सामान है। इसके बाद एक पुल 1810 में लन्दन में ऐसा बना जिसे वाटर लू के नाम से जाना जाता है। इस पुल को बनवाने में 3 से 4 साल का समय और उस समय के लगभग 30 लाख रुपये लगे थे।

दोनों पुल के मध्य में एक गज सिंह की मूर्ति रखा हुआ है और उत्तरी 10 ताख के पुल के कसेरी बाजार वाले छोर के अंत में पुल से सटा एक शाही हमाम हुआ करता था जो अब बंद करवा दिया गया है। उसी शाही हमाम से सटे घाट पर प्राचीन हनुमान मंदिर और लाल मस्जिद है। लगभग 200 वर्ष पुराने कई मंदिर भी मौजूद हैं। घाट बनाने के लिये यह सबसे उचित स्थान है जिससे मंदिरों के आस-पास के घाट से गन्दगी दूर की जा सके, क्योंकि आजकल शाही हमाम के बंद दरवाजे के आस-पास गन्दगी का अम्बार लगा हुआ है जिससे हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए आने वालों को असुविधा होती है। जिस प्रकार इस पुल के निर्माण के शुरू में जब 5 ताख का पुल बना तो एक पत्थर उसकी तारीख का लगा। उसी प्रकार से जब पुल बनकर तैयार हो गया तो एक पत्थर हमाम (पुल के अंत कसेरी बाजार वाले छोर) पर एक पत्थर लगवाया गया जिस पर फारसी में इसके पूरे होने का वर्ष (974 हिजरी) 1568 ई. लिखा है।

यह पुल इतना मजबूत है कि अब तक बहुत सी बाढ़ झेल चुका है लेकिन इसकी मजबूती पर कोई असर नहीं पड़ा। इस पुल ने 1774, 1855, 1864, 1871, 1903, 1936, 1982 ई. की बाढ़ को झेला है। हर दिन यातायात में वृद्धि हो रही है और पूरे शहर का यातायात इसी पुल पर निर्भर करता है लेकिन फिर भी इसकी मजबूती पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। आज केवल आवश्यकता है इस पुल पर उगे पेड़ों को साफ करवाने की। इसकी साफ-सफाई पर ध्यान दिया जाय और इसके नीचे घाट का निर्माण करवाया जाय जिससे पर्यटक विश्व के इस अजूबे को देखें और इसकी सुन्दरता के किस्से बयान करें।

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