श्रीराम वनगमन की कथा सुन भक्त हुये भाव—विभोर
श्रीराम वनगमन की कथा सुन भक्त हुये भाव—विभोर
केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने श्रीराम कथा का लिया आनन्द
गुड्डन जायसवाल
फतेहपुर। श्रीराम कथा महोत्सव में जब आचार्य शांतनु जी महाराज ने श्रीराम वनगमन की मार्मिक कथा का वर्णन किया तो कथा पंडाल में मौजूद भक्त अपने आंसू रोक नहीं पाये। पंचम दिवस की कथा महाराज श्री ने अयोध्या कांड की पावन मांगलिक प्रारंभिक चौपाइयों के गायन के साथ प्रारंभ किया। एक माह के बाद जनकपुर से लौटकर श्री धाम अयोध्या पहुंचे चारो राजकुमारों ने देखा कि अयोध्या की स्थिति एकदम परिवर्तित हो चुकी है। रिद्धि सिद्धि समृद्धि की बाढ़ आ गई। एक माह के बाद आज राज्यसभा बैठी तो महाराज ने भरी सभा में शीशा देखा महाराज श्री ने शीशा देखने के तात्पर्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि सही व्यक्ति का गुरु भी है। दुश्मन भी है, इसलिए शीशा जरूर देखना चाहिए स्वयं के देखने से गुरु का काम करता है। यदि दूसरा दिखाएं तो दुश्मन का काम करता है। शीशा देखने का अर्थ आत्मा वलोकन आत्मचिंतन आत्म दर्शन आत्म संवाद से है।
इस दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कार्यक्रम स्थल पहंुचकर श्रीराम कथा का आनंद लिया। सम्राट अशोक तिराहा मंडप गेस्ट हाउस के सामने वीआईपी रोड में संवेदना सेवा न्यास द्वारा आयोजित श्रीराम कथा को आगे बढाते हुये आचार्य शांतनु जी महाराज ने कहा कि अपने चारों पुत्रों के विवाह के पश्चात राजा दशरथ का एकमात्र सपना था कि वह अपने जेष्ठ पुत्र राम को अयोध्या नगरी का राजा बनाये, इसलिए राजा दशरथ ने अपने कुल गुरु वशिष्ठ से विमर्श करके राम का राज्याभिषेक निश्चित किया। राम के राज्याभिषेक के लिए तैयारियां शुरू कर दी गईं तथा पूरी अयोध्या नगरी की जनता अपने नए राजा को पाने के लिए उत्साहित थे। श्री राम हमेशा से ही जनता तथा अपने परिवार जन के प्यारे थे। लेकिन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था जिस वजह से राम की सौतेली माता राजा दशरथ की दूसरी पत्नी महारानी केकई की दासी मंथरा ने उनको उकसाया। मंथरा ने रानी कैकई के मन में यह भ्रम पैदा किया कि राजा दशरथ उनके पुत्र भरत को ननिहाल भेज कर श्री राम को राजा बनाने के प्रयत्न कर रहे हैं। तब मंथरा ने कहा कि वह राम की जगह अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाए। तुम्हारे पास अभी भी समय है तुम चाहो तो राम के स्थान पर अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बना सकती हो।
राम के वनगमन व कोप भवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। राजा दशरथ उन्हें समझा रहे थे। राम के निवास के बाहर भारी भीड़ थी। लक्ष्मण भी वहीं थे।
कथा वाचक ने बताया कि महल में पहुंचकर राम ने पिता को प्रणाम किया। फिर पिता से पूछा क्या मुझसे कोई अपराध हुआ है। कोई कुछ बोलता क्यों नहीं। इस पर कैकयी बोली महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर मांगे, जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र सम्मत नहीं है। रघुकुल की नीति के विरुद्ध है। कैकेयी ने बोलना जारी रखा, मैं चाहती हूं कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो। राम वन जाएंगे। कौशल्या यह सुनकर सुध खो बैठीं। लक्ष्मण अब तक शांत थे पर क्रोध से भरे हुए। राम ने समझाया और उनसे वन जाने की तैयारी के लिए कहा। महाराज जी ने मंथरा के बारे में बताते हुए कहा कि मंथरा कुसंग है और साथ ही दहेज का सामान इन दोनों से बचना ही चाहिए। लक्ष्मण जी को बहुत समझाने के बाद भी लक्ष्मण जी जब नहीं माने तो लक्ष्मण भगवान और जानकी तीनों वन के लिए चले।
राम कथा में प्रमुख यजमान राकेश श्रीवास्तव के साथ ब्लाक प्रमख हसवा विकास पासवान, संजय पांडेय, आदित्य सिंह, रजनीश अवस्थी यजमान के रूप में मौजूद रहे। इस दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, जहानाबाद विधायक राजेंद्र पटेल, पूर्व जिलाध्यक्ष दिनेश बाजपेई, रघुवीर लोधी, जिला संघ चालक आरएसएस राम प्रकाश, संवेदना सेवा न्यास के आजीवन संरक्षक अरविंद सिंह राजावत, आरएसएस के प्रांत कार्यवाह अनिल श्रीवास्तव, विभाग प्रचारक बांदा मनोज, फतेहपुर विभाग के कार्यवाह ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह, बांदा विभाग के कार्यवाह संजय जी, भाजपा नेत्री कविता रस्तोगी, अपर्णा सिंह गौतम, विनीत श्रीवास्तव, विशेष बाजपेई, हिमांशु श्रीवास्तव, विनोद चंदेल, आयोजन समिति के संयोजक स्वरूप राज सिंह जूली, संवेदना सेवा न्यास के संस्थापक अध्यक्ष पंकज, संवेदना सेवा न्यास के आजीवन संरक्षक अनुराग त्रिपाठी, नमामि गंगे संयोजक शैलेंद्र शरन सिंपल आदि भक्त मौजूद रहे।
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