शिक्षा छोड़ सामाजिक कार्यों में हाथ बंटा प्रधान पद को किया सुशोभित
शिक्षा छोड़ सामाजिक कार्यों में हाथ बंटा प्रधान पद को किया सुशोभित
4 बार जिलाधिकारी गांव को कर चुके हैं सम्मानित
देवी प्रसाद शर्मा
आजमगढ़। तहबरपुर विकास खंड अंतर्गत नवली ग्राम पंचायत के रहने वाले राजेश उपाध्याय किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वह अपनी शिक्षण व्यवस्था लगातार जारी रख इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से किसी बड़े पद के लिए काफी प्रयासरत रहें। वहां पर वह हार्ड वर्क कर सफलता का बेमिसाल इतिहास लिखना चाहते थे लेकिन जब कभी वह अपने गांव आते तो उन्हें लगता अगर अपने गांव में ही भविष्य को सुधारा जाए तो बहुत कुछ गांव का बदलाव किया जा सकता है।
यही कारण था कि 1993 में अर्थशास्त्र की मास्टर डिग्री लेने के बाद कंप्यूटर क्षेत्र में भी उन्होंने अच्छा अनुभव प्राप्त किया। साथ ही नोएडा के एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम कर लोगों के जीवन शैली के बारे में ढेर सारी जानकारी की लेकिन वहां ज्यादा दिन तक उस कंपनी में कार्यरत नहीं रहे। इसी बीच उनको 2000 में चिल्ड्रन कालेज में पढ़ाने का शुभ अवसर मिला लेकिन 2015 में उसको भी बाय-बाय करना पड़ा। कारण बहुत स्पष्ट था कि समाज एवं गांव की व्यवस्था से वह काफी दुखी थे। इसी बीच बड़सरा खालसा गांव में प्रधानी का चुनाव चल रहा था, उसमें महिला सीट होने के कारण उन्होंने अपनी पत्नी अर्चना उपाध्याय को मैदान में उतार दिया जिसमें उनको सम्मान के साथ प्रधान पद मिल गया। गांव में इतने समर्पित ढंग से काम किए इनके कार्यकाल में 4 बार जिलाधिकारी द्वारा इनके गांव को सम्मानित किया गया। शिवाकांत द्विवेदी और एनपी सिंह कई बार इस गांव का दौरा भी किए थे।
साथ ही एक दैनिक पत्र द्वारा भी इस गांव के प्रधान को सम्मानित किया गया। गांव में सामुदायिक शौचालय, आंगनवाड़ी, प्राइमरी विद्यालय के साथ संपर्क मार्ग, सीसी रोड, शौचालय के साथ राज्य सरकार द्वारा जो भी स्कीम इस गांव के लिए आई, उसको इस ढंग से बनाया कि वह औरों के लिए मिसाल साबित हो। यही कारण था कि बेहतर काम करने के लिए इस गांव की प्रधान अर्चना उपाध्याय पत्नी राजेश उपाध्याय को कई बार सम्मानित किया गया। राजेश के पिता अवधेश उपाध्याय 26 अप्रैल 2021 को इस दुनिया को अलविदा कह गए तो उसके बाद आज राजेश कृषि कार्य में लगकर भी समाज की सेवा में लगे हुए हैं। चारों तरफ जब धान की फसल रोपाई के लिए तैयार की जाती है तो यह बड़े पैमाने पर कृषि यंत्रों को मंगाकर धान की बुवाई वाली मशीन के साथ हर महीने में संतोषजनक रुपए कमाने का भी प्रयास करते हैं। ऊपर से समाजवाद की मिसाल भी इनके अंदर कूट-कूट करके भरी रहती है जिससे मान, सम्मान, पद, प्रतिष्ठा के साथ पंचायती कार्यों में दिल खोलकर समाज की लोकप्रियता औरों के लिए मिसाल बने।
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