भ्रष्ट नौकरशाही की भेंट चढ़े लाखों खर्च कर खोले गये पशु सेवा केन्द्र
गोविन्द वर्मा
बाराबंकी। चिकित्सा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं पशु पालकों के लिये हवा हवाई साबित हो रही हैं। स्थानीय स्तर पर पशुओं को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की नीयत से लाखों खर्च कर ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गए पशु सेवा केन्द्र अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं।
पशु चिकित्सालयों में कार्यरत डाक्टर तैनाती स्थल पर रुकने के बजाय लखनऊ से आते जाते हैं। भ्रष्ट नौकरशाही पर नियंत्रण पाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है। पशु सेवा केंद्रों पर तैनात डाक्टर पेपर वर्क के सहारे सरकारी योजनाओं का लाभ खुद उठाने में लगे हुए हैं। तैनाती स्थल पर नहीं जाते पशुधन प्रसार अधिकारी
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. मार्कण्डेय के अनुसार समाज के अंतिम व्यक्ति तक विभागीय योजनाओं का लाभ पहुंचाने की मंशा से जिले में 37 पशु चिकित्सालयों के साथ ही 49 पशु सेवा केंद्र क्रियाशील हैं। इन केंद्रों को खोलने के पीछे सरकार की मंशा पशुपालकों को स्थानीय स्तर पर इलाज मुहैया कराने के साथ ही सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना बताई जा रही है।
विभागीय अधिकारियों की सरपरस्ती में पशु सेवा केंद्रों पर तैनात डाक्टर बिना केंद्र पर पहुंचे ही हर महीने मोटी पगार उठा रहे हैं। भ्रष्टाचार इस कदर कि इनकी जांच करने वाले अफसर खुद इन्ही की सेवा में लगे हुए हैं। पशुधन प्रसार अधिकारी के रूप में तैनाती देते समय सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह लोग प्रचार प्रसार पर खुद ही ग्रहण लगाएंगे। हरख संवाद के अनुसार यहां पर पशु चिकित्सालय के अधीन शरीफाबाद, मिर्जापुर व नींदनपुर में पशु सेवा केंद्र बनाए गए हैं। पशु सेवा केंद्र मिर्जापुर में तैनात पशुधन प्रसार अधिकारी शारदा ने आज तक अपने तैनाती स्थल पर जाने की जहमत नहीं उठाई है। इस संबंध में पशु चिकित्सालय हरख के डाक्टर सुरेश पाल ने बताया कि मिर्जापुर इंटीरियर इलाका होने के साथ ही काफी दूरी पर है। महिला होने के नाते इनको मैंने अपने अस्पताल में बैठा रखा है। देवा संवाद के अनुसार यहां पर हजरतपुर, बबुरी गांव, उखड़ी व मित्तई में बने पशु सेवा केंद्र में डाक्टर कब आते हैं। इसकी जानकारी क्षेत्रीय लोगों के पास नहीं है। प्रचार-प्रसार के अभाव में दम तोड़ रही विभाग की योजनायें
विकास खण्ड स्तर पर स्थापित पशु चिकित्सालय के डाक्टर पशु सेवा केंद्रों की निगरानी का बीड़ा उठाये हुए है। टीकाकरण, कुपोषण से मुक्ति सहित अन्य सुविधाएं समाज के अंतिम पशु पालक तक पहुँचाने के लिए बनाये गए यह केंद्र खुद कुपोषित होकर रह गए हैं। विभागीय भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझे पशु सेवा केंद्रों का संचालन महज कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। केंद्रों पर नियुक्त पशुधन प्रसार अधिकारी कब आते हैं इसकी जानकारी स्थानीय लोग भी नहीं दे पाये। सदर पशु चिकित्सालय के अधीन खोले गए पशु सेवा केंद्र प्रतापगंज, गदिया, अलीपुर, मौथरी, मंजीठा व जहगीराबाद में बने एल यू सेंटर तो अपना वजूद भी खो चुके हैं। मेटीनेंस के नाम पर लाखों रुपया खर्च होने के बाद भी पशु सेवा केंद्रों की बदहाली भ्रष्ट नौकरशाही का प्रत्यक्ष प्रमाण है। मंजीठा का पशु सेवा केंद्र हेयर कटिंग सैलून में तब्दील हो चुका है। ग्रामीणों के मुताबिक अब यह सेंटर रामपुर में चला गया है जबकि सी वी ओ के मुताबिक कोई भी सेंटर स्थानांतरित नहीं हो सकता है। गदिया सेंटर तो शराबियों का अड्डा बन चुका है। पड़ोसियों के मुताबिक शाम ढलते ही यहां अराजक तत्वों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। डाक्टर के बारे पूछने पर पता चला कि वह महीने में एक आध बार आते तो हैं परन्तु सेंटर की साफ सफाई नहीं की जाती है। काफी प्रयासों के बाद भी मौथरी का पशु सेवा केंद्र खोजे नहीं मिला। स्थानीय लोगों के मुताबिक डाक्टर साहब के चेले कमलेश तथा सरवन नाम के दो लोग पूरे क्षेत्र के जानवरों का इलाज करते हैं कोई बहुत गम्भीर मामला होने पर डाक्टर साहब से फोन पर राय ली जाती है।
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