चुनावी चकल्लस: दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करेगा रायबरेली का लोकसभा चुनाव
2019 के चुनाव में भी आंतरिक कलह बनी थी हार की वजह, इस बार भाजपा के दिग्गज नेताओं कि अग्नि परीक्षा वर्षों पुराने मनमुटाव को भूल करके एक हुये मनोज व दिनेश, भाजपा से बढ़कर दोनों धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर यदि इस बार रायबरेली से लोकसभा चुनाव हारी भाजपा तो अंधकारमय हो सकता है दिग्गजों का भविष्य
अनुभव शुक्ला
रायबरेली। जिले में ब्राम्हण और क्षत्रिय जाति से दो दिग्गज चेहरे जिसमें एक का जलवा सपा सरकार में रहा है तो दूसरे क्षत्रिय जाति के नेता का वर्तमान सरकार में जलवा कायम है। वर्ष 2016 में साईकिल पंचर होते ही जिले में सपाइयों का रुतबा भले ही खत्म हुआ किंतु ऊंचाहार के सपा विधायक मनोज पाण्डेय का अपने आप में जलवा कायम रहा। 2017 में मोदी लहर के बावजूद विधायक बने थे। इधर जिले में एमएलसी रहे दिनेश प्रताप सिंह को 2019 में बीजेपी से लोकसभा चुनाव का टिकट मिला जिसमें 1 लाख वोट पाकर हार का मुंह देखना पड़ा। हार होती भी क्यूं न, दोनों दिग्गज जो एक दूसरे को गिराने का दिनभर ताना-बाना बुनते रहे। इतना ही नहीं, भाजपा को आंतरिक कलह ही 2019 के चुनाव में ले डूबी थी अब 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से विधायक से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया किंतु ऊंचाहार विधानसभा से सपा विधायक मनोज पाण्डेय बीजेपी प्रत्याशी अमरपाल को जबरदस्त वोटों से हरा दिया और फिर से तीसरी बार ऊंचाहार से विधायक बने।
समय का चक्र घूमा बीजेपी ने लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को योगी सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया इधर 2022 में नगर पंचायत का चुनाव हुआ जिसमें नगर पालिका अध्यक्ष के पद पर जहां बीजेपी एक डाक्टर की पत्नी को जिताने को लेकर ताकत झोंक दिया तो वहीं समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे मनोज पाण्डेय अपने उम्मीदवार पारस को जिताने के लिए धरने पर बैठे लगभग आधा दर्जन प्रेस वार्ता में बीजेपी पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाते रहे। इशारों ही इशारों में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह पर भी निशाना साधते रहे।
नतीजा यह निकला कि दो दिग्गजों के मनमुटाव का फायदा नगर पालिका के चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त तरीके से उठाया और कांग्रेस ने नगर पालिका अध्यक्ष के पद पर अपना कब्जा जमा लिया किंतु एक बार फिर समय का चक्र घूमा 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा विधायक मनोज पाण्डेय बागी होकर भाजपा के ही बेडे में आ धमके। चर्चाएं थी कि लोकसभा चुनाव में मनोज पाण्डेय टिकट बीजेपी से हथिया लेंगे। जिले भर में सपा विधायक मनोज पाण्डेय दर्जनों सभाओं को सम्बोधित करते रहे प्रधान व बीडीसी को अपने पक्ष में होने की फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करते रहे कि इधर मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली लोकसभा सीट से टिकट मिल गया। शुक्रवार को कांग्रेस परिवार से राहुल गांधी के नामांकन करते ही रायबरेली लोकसभा सीट देश कि वीवीआईपी सीट कि गिनती में आ गई।
इधर आपसी मनमुटाव को भांपकर सूबे के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक शुक्रवार को ही ऊंचाहार विधानसभा के पूर्व बीजेपी प्रत्याशी अमरपाल मौर्या व मंत्री दिनेश दिनेश सिंह को लेकर मनोज पाण्डेय के घर जा धमके। आपस में गले मिलाकर आपसी मनमुटाव खत्म करा दिया किंतु यह आपसी मनमुटाव अंदर से खत्म हुआ या नहीं? यदि आपसी मनमुटाव खत्म हुआ तो चुनाव के सिकंदर दोनों जय वीरू की जोड़ी इस बार रायबरेली से कांग्रेस का किला ढहा पायेगी? क्या पिछले कई वर्षों से वोटों के ठेकेदार बने जिले के दर्जनों नेता इस बार रायबरेली में कमल खिला पायेंगे, क्योंकि 2019 व 2022 के चुनावों में बीजेपी के कुछ बड़बोले नेताओं के ताकत का अंदाजा रायबरेली से बीजेपी कि हार होते ही भाजपा मुख्यालय को लग चुका था। एक बार फिर से बीजेपी ने नैय्या इन्हीं के हाथों सौंप दी है और इस बार बीजेपी अपने बेडे में सपा के बागी विधायक मनोज पाण्डेय को भी लाकर खड़ा कर दी है जो अक्सर यह दावा करते हैं कि ऊंचाहार का जनाधार सपा का नहीं बल्कि मेरा व्यक्तिगत है। क्या वह जनाधार मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को सासंद बना पायेगी या फिर वह जनाधार सपा तक ही सीमित है। गांवों गलियों में चुनावी चकल्लस करने वाले चुनावी पंडित इन प्रश्नों का उत्तर खोजने में दिन-रात लगे हुए हैं। हो कुछ भी किंतु यदि इस बार बीजेपी रायबरेली से हारती है तो मंत्री दिनेश ही नहीं, बल्कि सपा के बागी विधायक मनोज पाण्डेय, बीजेपी विधायिका अदिति सिंह का बीजेपी से राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हो सकता है। यह कहना मुश्किल नहीं है कि रायबरेली का यह लोकसभा चुनाव इन दिग्गज नेताओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है।
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