जरा सी सतर्कता से लावारिश से वारिश हो सकती है लाश
सुशांत गोल्फ सिटी में मिली लाश का नहीं मिल सका सिर, नहीं हो सकी पहचान
यूपी कॉप पर फोटो डालकर पुलिस भूल जाती है पहचान की कार्यवाही
हर साल महज 20 फीसदी लावारिस लाशों की हो पाती है पहचान
अखिलेश श्रीवास्तव
लखनऊ। सुशांत गोल्फ सिटी इलाके में एक सिर कटी युवक की लाश मिली थी। युवक की हत्या की गई और पहचान छिपाने के लिए धड़ से सिर काट दिया गया था। पूरे घटनाक्रम को 72 घंटे हो गए लेकिन अब तक पुलिस उसकी शिनाख्त नहीं कर सकी। 22 जनवरी 2019 में भी इकाना स्टेडियम के पास एक ट्राली बैैंग में युवती की लाश मिली थी। उसकी भी पहचान नहीं हो सकी थी। लखनऊ में ज्यादातर लावारिस लाशों की पहचान नहीं हो पाती है। महज बीस फीसदी मामले में पहचान हो पाती है।
एप में एक कॉलम
लावारिस लाशों की पहचान के लिए यूपी कॉप एप में एक कालम है जिसे गुमशुदगी व लावारिस लाश दोनों कालम को एक साथ भी जोड़ गया है। इस कालम में थाने स्तर पर मिलने वाली लाश की फोटो व अन्य पहचान उसमें अपलोड किया जाता है। हालांकि इससे पहचान बहुत कम ही हो पाती है।
पहचान के लिये क्या होती कार्यवाही
लावारिस शवों की शिनाख्त में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए उनका डीएनए मैचिंग प्रोफाइल तैयार करने का नियम है। पंचनामा से पहले मृतक के बाल, दांत, नाखूनों के नमूने सुरक्षित किए जाएंगे, ताकि जरूरत पडऩे पर परिजन शिनाख्त कर सके।
क्या होता है डीएनए टेस्ट
डीएनए मतलब है डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड। इंसान के शरीर का एक ऐसा एसिड, जो जिंदगी के कई रहस्यों को समेटे रहता है। हर इंसान में डीएनए का एक खास पैटर्न होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे जेनरेशन में ट्रांसफर होता है। बच्चे में मां और बाप दोनों के पैटर्न होते हैं।
लावारिस शव मिलने पर पुलिस क्या करती है
सबसे पहले एफआईआर दर्ज होती है और शव की तस्वीर ली जाती है। फोटो खींचकर न्यूज पेपर में विज्ञापन देने का नियम है। वाट्सएप चैट ग्रुप में भी फोटो और कपड़े-जूते-चश्मे, चेन या लॉकेट संबंधी डीटेल शेयर की जानी चाहिए।
इन प्वाइण्ट पर भी रहता है फोकस
पोस्ट्मॉर्टम के दौरान मृत्यु की वजह के साथ-साथ मृतक के शरीर पर जन्म से मौजूद कोई निशान, शरीर पर कोई चोट, कोई टैटू की शिनाख्त की जाती है। कई बार इससे ऐसी जानकारी मिलती है जिससे मृतक की पहचान हो जाती है।
72 घण्टे बाद होता है पोस्टमार्टम
इस दौरान थानों में दर्ज गुमशुदगी की रिपोर्ट या गुमशुदगी के विज्ञापनों से मिलान करके देखा जाता है कि क्या कोई पहचान साबित हो रही है। इसके बाद लाश को 36-72 घंटे मुर्दाघर में रखा जाता है।
आधार कार्ड से हो सकती है पहचान
लावारिस लाशों की पहचान में आधार कार्ड मददगार साबित हो सकता है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट की राय है कि लावारिस लाशों की पहचान के अब तक जितने तरीके हैं, वे फेल हैं और 72 घंटे में पहचान अमूमन नहीं ही हो पाती है। डॉक्टरों का कहना है कि आधार के बायोमीट्रिक सिस्टम से लावारिस लाश की पहचान एक मिनट में हो सकती है। पुलिस को एक पोर्टेबल बायोमीट्रिक सिस्टम दे दिया जाए तो लावारिस बॉडी का अंगूठा टच कराते ही सारी जानकारी मिल जाएगी।
ये कदम उठाने चाहिये
पुलिस को शहर में रहने वाले बेघर लोगों की पूरी डिटेल रखनी चाहिए। शव के पास मिली चीजों के आधार पर आसपास के जिलों में करनी चाहिए।पहचान की कोशिश के बारे में सोशल मीडिया पर फोटो, कपड़े और चीजों को डाला जाय और पूरी सूचना लिखी जाय।
यहां लापरवाही बरतती है पुलिस
-शवों के फिंगर प्रिंट नहीं लेते। -मीडिया में विज्ञापन देने की जगह खबर प्रकाशित करने पर फोकस। -अधिकतर शवों के डीएनए सैंपल नहीं लेते। -कपड़े तक संभाल कर नहीं रखे जाते। -सीआईडी सीबी शाखा को सूचना नहीं दी जाती। केवल जिपनेट के भरोसे काम चलता है। -ऐसे शवों के फोटो व अन्य जानकारी के पंपलेट छपवाकर स्टेशन व आस—पास के राज्यों में नहीं भेजे जाते।
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