गुँजती स्वर रागिनी वेष धर चादनी की यामिनी भी झूमकर, कर रही हिय को विकल! प्रिय! हो रहा …… क्षरित हर पल हो रही फैल रहे पाट भी तटबंध हो बनकर अड़िग,प्रवाह को कर दो विफल! प्रिय! हो रहा….. कुछ अनकही सी बात मेरी जो पहुचती तुम तक थी राह भटके पथिक सी, हो रही व्याकुल गजल! प्रिय! हो रहा…… काँपता दिख जाये जो गर वो भोर का तारा कही तोड़ सारी भावरों को, मुक्त हो जाऊ सफल! प्रिय! हो रहा नैन मेरा सजल….. जयमाला “प्रखर”
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