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तुलसी जीवन वृत्त

तुलसी जीवन वृत्त

अन्तिम-भाग
ज्ञान सुधा

द्वेश के अंकुर जन्म लियो, अभिमान बढ़्यो नित ज्ञान नसायो।
जीवन वय शत पञ्च अहै, कल्पांत न नाश इहै भ्रम छायो।
नाश कियो निज ज्ञान इतै दुख दीन्हों सबै सुख काहू न पायो।
रे मन मूरख चेत नहीं, सुर दुर्लभ मानुष देह गवायो।

सोई दशा भई काशी जड़ वृन्द ज्ञानी जन,
नित नव त्रास संत तुलसी ने पाये है।
ग्रन्थ की परीक्षा हेतु कीन्हो हैं जतन पुनि
शिव आगे शास्त्र राखि सबको बताये हैं।
वेद शुचि शास्त्र ताको नीचे राखि मानस को
मन्दिर को द्वार पुनि बन्द करि आये है।
पट खुल्यो शिवधाम प्रातहीं अपर दिन
देखा शास्त्र वेदोपरि मानस रखाये हैं।

ज्ञानी अभिमानी सबै, काशी विप्रहिं वृन्द।
सीस नाइ बोले गिरा जय तुलसी सुखकंद।

क्षमा मांगि पद वन्दि पुनि विप्र नवायउ शीश।
लीन्हेहुं चरणोदक सबै कहि जय जय जगदीश।

असी घाट जाइ वास कीन्हो कवि तुलसी ने
तहां कलिआइ नित त्रास तिन्ह दीन्हो है।
गुरू हनुमान जी को ध्यान कीन्हो तुलसी ने
विनय पद रचौ आज्ञा हनुमान दीन्हो है।
विनय पद रचि प्रभु राम को समर्पि जब,
स्वयं प्रभु राम तेहिं सही तब कीन्हो है।
तुलसी को प्रभु राम दीन्हों हैं अशीष निज
कृपा प्रभु राम तेहिं निर्भय कीन्हो है।

द्वादश अक्षर मन्त्र समान,
सुहावन द्वादश ग्रन्थ लिख्यो हैं।
रामलला नहछू कवितावलि,
जानकी मंगल गाई दियो हैं।
बरवै रामायण पार्वती मंगल,
कृष्ण गीतावली को विरच्यो हैं
गीतावली वैराग्य संदीपनि,
रामाज्ञाप्रश्न दोहावली सोहै।।
मान्यो गुरू निज केशरी नन्दन,
हनूमान बाहुक मन्त्र लियो है।।
ज्ञान गिरा बहु छन्द कवित्त,
विधान अनेकहिं गान कियो हैं।।

राम चरित मानस विमल, सम शुचि वेद पुरान।
सप्त काण्ड सत द्वीप जहं, अमर गिरा निधि ज्ञान।।

संवत सोलह सौ असी मास श्रावण में
तिथि बदी तृतीया को दिन शनिवार है।
मृत्यु को वरण जहां मंगल भवन कहै
सोइ काशी असी तट गंग निर्विकार है।
तुलसी जो त्यागि देह, प्रभु में भये हैं लीन,
ज्ञान रवि अस्त जग ब्यापेउ अन्धकार है।
शब्दहीन गिरा कैसे महिमा प्रदीप कहैं
वेद ज्ञान राशि तुलसी से गये हार हैं।

तुलसी न होते राम महिमा कहत कौन,
संत साधु छाड़ि कोउ राम को न जानते।
भरत लखन भ्रातृ प्रेम हनुमान भक्ति
शबरी निषाद राम प्रेम को न मानते।
कथा दशशीश मेघनाथ वीर कुम्भकर्ण
सुगति अधम गीध दीन्ही प्रभु राम ते।
सीय पति सेवा लोकहित त्याग उर्मिला को
कुटिल कैकेई कैसे मन्थरा धिकारते।

जानत न जग छल मारीच जयंत को भी
मैत्री प्रभु सुकंठ की कोई न बखानता।
अहिल्या उद्धार ऋषि बाल्मीकि अगस्त्य को
जग विश्वामित्र कुलगुरू को न जानता
शिवा शिव गरूण भुसुण्डि ॠषि भरद्वाज
याज्ञवल्क्य राम कथा कौन पहचानता।
तुलसी की राम कथा जग में न होती आज
कलि भव सिंधु प्राणी कौन है उबारता।

तुलसी जय जय जय जयति, जयति महाकवि रीति।
रामचरित गायन कियो, पायो प्रभु पद प्रीति।।
रचनाकार— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
मो.नं. 9918357908

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