रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करें: मौलाना

रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करें: मौलाना

अब्दुल मोबीन सिद्दीकी
उतरौला, बलरामपुर। मौलाना मौलाना अहमद रजा मरकज़ी ने माहे रमजान में होने वाले शब ए कद्र की फजीलत और अहमियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि माह-ए-रमज़ान की रातों में एक रात ऐसी भी आती है जो हज़ार रातों से बेहतर है जिसे शब ए क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का मतलब होता है“सर्वश्रेष्ट रात” लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात। शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है जिसके एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है, इसीलिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्यारे आका सल्लल्लाहु अलै. व सल्लम की हदीस से साबित है। रविवार को 20वें रमज़ान के 21वीं शाम को रमज़ान का आखरी अशरा शुरू हो गया।
मौलाना अहमद रज़ा मरकज़ी कहते हैं कि हदीस शरीफ में आया है की शबे कद्र रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों जैसे 21, 23, 25, 27 और 29 वीं रात में तलाश करो। इन ताक रातों में रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करें और अपने गुनाहों की माफी मांगे। शबे कद्र में पूरी रात इबादत में गुजारनी चाहिए। नबी पाक सअव रमजान के आखिरी अशरे में इबादत का खुसूसी ऐहतेमाम बहूत कसरत से फरमाते थे। शब-ए-कद्र की रात में ही अल्लाह ने कुरआन पाक को नाजिल किया जो पूरी इंसानियत के लिए हिदायत और मार्गदर्शन का काम करती है।
हालांकि अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि शब-ए-कद्र की रात कौन सी होती है लेकिन इतना जरूर बताया गया है कि रमज़ान के आखरी अशरे के ताक रात में अल्लाह से की गई दुआ कबूल होती है। इस रात को अल्लाह के बंदों पर रहमत बरसती है। रमजान के महीने की इन ताक रातों के फजीलत को देखते हुए बहुत से लोग शब-ए-कद्र की रात से पहले ही अल्लाह की इबादत के लिए एतिकाफ यानि कि एकांतवास में चले जाते हैं। ताकि वो बिना किसी खलल के अपनी इबादत पूरी कर सकें। ये लोग ईद का चांद निकलने के बाद उसे देखकर ही घरों या मस्जिदों से बाहर निकलते हैं।
मौलाना ने कहा कि रमजान के आखिरी 10 दिनों में लोग एतिकाफ करते हैं। मौजूदा समय में रमजान के महीने का आखिरी अशरा यानि (पवित्र माह के आखिरी 10 दिन) चल रहा है। इस्लाम धर्म में रमजान के इन आखिरी 10 दिनों को खास महत्व दिया गया है। आखिरी अशरे में एतिकाफ में बैठकर सभी लोग एक किनारा पकड़ लेते हैं और इसी में कई नियम एक साथ बैठते हैं। यहां बैठने के बाद इन लोगों को कुछ जरूरी बातों को छोड़कर उस जगह से अलग जाने की इजाजत नहीं होती है। अगर मस्जिद में कोई एतिकाफ में बैठा है तो वह व्यक्ति मस्जिद परिसर से बाहर नहीं जा सकता है। बता दें कि एतिकाफ में बैठकर मानवता के लिए दुआएं मांगी जाती है। एतिकाफ में लोग समाज के लिए बरकत, उनकी तरक्की और लोगों को रोगमुक्त रखने के लिए खुदा से दुआएं मांगते हैं।

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