वरूण का टिकट कटा तो पीलीभीत से फिर लड़ सकती हैं मेनका

वरूण का टिकट कटा तो पीलीभीत से फिर लड़ सकती हैं मेनका

अजय कुमार, लखनऊ
भारतीय जनता पार्टी गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में स्मृति ईरानी की जीत को लेकर काफी आश्वस्त नजर आ रही है। बीजेपी ने लगभग यह मान लिया है कि अमेठी में राहुल गांधी की वापसी नहीं होने जा रही है। अब बीजेपी के सामने बस सवाल यह है कि अमेठी से राहुल गांधी नहीं तो कौन? यही यक्ष प्रश्न रायबरेली को लेकर भी सामने आ रहा है। सोनिया गांधी ने राज्यसभा का रूख करके रायबरेली को टाटा-बाय-बाय कर दिया है। यहां से प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने की चर्चा शुरूआत में बहुत तेजी से चली थीं लेकिन रायबरेली में कांग्रेस की कोई ऐसी गतिविधि दिखाई नहीं दे रही है जिससे इस बात का अहसास हो सके कि प्रियंका यहां से चुनाव लड़ेगी। अब अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस जिस भी नेता को मैदान में उतारेगी। पहले उसकी गांधी परिवार के प्रति वफादारी की जांच होगी। बात यह और महत्वपूर्ण सीट सुलतापुर की कि जाये तो यहां भी पेंच फंस हुआ है। सुलतानपुर से भी गांधी परिवार का काफी आत्मीयता का संबंध रहा है।यहां से गांधी परिवार या उसके वफादार चुनाव भी जीतते रहे हैं, इस समय सुलतानपुर से से बीजेपी नेता मेनका गांधी सांसद हैं लेकिन मेनका को लेकर बीजेपी आलाकमान ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। अयोध्या से सटी सुलतानपुर सीट भी सत्तादल और विपक्ष के लिए खास मायने रखती है। यही वजह है कि दावेदारों की खूब जांच-परख करने के बाद ही घोषणा की जाती है। इस बड़ी सीट पर लोकसभा चुनाव में बड़ा दांव आजमाने की जुगत में भाजपा व विपक्षी दल दोनों ही लगे हुए हैं। इसी कारण से अब तक जहां भाजपा वर्तमान सांसद मेनका गांधी को यहां से चुनाव लड़ाने की घोषणा नहीं कर सकी। वहीं इंडी गठबंधन और बसपा भी मौके की तलाश में हैं।


इस बीच खबर यह भी है कि मेनका गांधी को यहां के बजाय पीलीभीत से एक बार पार्टी फिर मौका देना चाहती है। यदि ऐसा होता है तो सुलतानपुर से बीजेपी पिछड़ी जाति, वह भी कुर्मी बिरादरी का उम्मीदवार उतार सकती है। इस समय सुलतानपुर के लिये जो तीन नाम चर्चा में हैं, उममें एक इस बिरादरी के भी दावेदार का है। वहीं पिछली बार गठबंधन दलों के उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह सोनू और रायबरेली के ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पांडेय समेत अन्य नामों की भी चर्चा है लेकिन अब तक कुछ स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है। इस सीट पर 2014 के चुनाव में वरुण गांधी सांसद चुने गए थे जबकि 2019 में उनकी मां पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने जीत हासिल की थी। पिछली बार मेनका और वरूण गांधी की सीटों की अदला-बदली हुई थी। इस बार वरुण को लेकर उच्च स्तर पर नाराजगी है। ऐसे में मेनका गांधी की सीट को लेकर भी पेच फंसा है। मेनका गांधी का मजबूत पक्ष यह है कि 5 साल के कार्यकाल में भाजपा की स्थिति ठीक है। 2022 के विधानसभा चुनाव में वह 5 में 4 सीटें जीतने में कामयाब रही।
सुलतानपुर लोकसभा सीट पर कुर्मी बिरादरी का उम्मीदवार भाजपा द्वारा उतारे जाने को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि इस मंडल में अयोध्या से लल्लू सिंह, अंबेडकरनगर से रितेश पांडेय, अमेठी से स्मृति इरानी और बाराबंकी में अनुसूचित जाति का प्रत्याशी होगा। अब बची सुलतानपुर सीट पर इस बार पिछड़ी जाति का उम्मीदवार देकर पार्टी जातीय संतुलन साधने की कोशिश में है। इसके जरिए वह सपा के पीडीए को जवाब भी दे सकेगी। साथ ही आस—पास की सीटों पर भी इसका असर पड़ेगा। वहीं गठबंधन के नेता इस फेर में हैं कि यदि मेनका को भाजपा ना बोल देगी तो उसकी मनचाही मुराद पूरी हो जाएगी। शायद यही कारण है कि खाते में सीट आने के बावजूद सपा की चुनावी तैयारियां शिथिल हैं। जिले के पदाधिकारी यह कह रहे हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का जो निर्देश होगा, उसका अनुपालन कराया जाएगा।

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