बाबू वीर महान वीर योद्धा थे जिन्होंने देश की आजादी के लिये लड़ा और जीता: दिनेश

बाबू वीर महान वीर योद्धा थे जिन्होंने देश की आजादी के लिये लड़ा और जीता: दिनेश

अमरेन्द्र मिश्र
आरा। देश के महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव दिवस पर उनके प्रमिमा पर पुष्प अर्पित किया गया जहां भाई दिनेश ने कहा कि वह बहुत ही बहादुर आदमी थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ा और जीता भी। जिस तरह से वह किला मैदान, उनके जन्म भूमि का विकास होना चाहिए, आज तक नहीं हो पाया, यह दुखद है। उन्होंने कहा कि मैं जगदीशपुर नगर पंचायत के आम नागरिक के सहयोग से जन आंदोलन किया था जिसका परिणाम है कि किला इस तरह दिख रहा है। जन आंदोलन का परिणाम रहा था कि 1 करोड़ 12 लाख रुपए किला मैदान का जीर्णोद्धार के लिए आया था। जब मैं विधायक बना तो बाबू वीर के किला मैदान और नगर के लिए पैसा दिया जिससे सौंदर्यीकरण हुआ।

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा आवाज उठाते रहा हूँ कि बाबू वीर के किला मैदान का राष्ट्रीय पर्यटक स्थल बने, जगदीशपुर किला मैदान से आरा हाउस, आरा हाउस से शिवपुर घाट और शिवपुर घाट से जगदीशपुर किला मैदान तक पर्यटक पथ बने, जगदीशपुर किला मैदान से आरा हाउस तक जो सुरंग था, उसे विकसित किया जाय, जगदीशपुर नगर मे गेस्ट हाउस, पर्यटक होटल का निर्माण हो, वीर कुंवर सिंह के नाम से सैनिक स्कूल खुले, बाबू वीर कुंवर सिंह के जीवनी को प्रति दिन लाईट एंड साउंड के माध्यम से दिखाने का व्यवस्था बने।
उन्होंने कहा कि वीर जी का जन्म 23 अप्रैल 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के एक क्षत्रिय जमीनदार परिवार में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह एक साधारण किसान थे। वे अंग्रेजी सरकार के प्रति विश्वासपात्र बने जिसके कारण उन्हें भोजपुर जिले की जमींदारी मिली थी। उनके माता जी का नाम पंचरत्न कुंवर था। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे। 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह एवं भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू जी और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे।
ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, ‘उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र 80 के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता। इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस बहादुर ने जगदीशपुर किले से “यूनियन जैक” नाम का झंडा उतारकर ही दम लिया। वहाँ से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई। बाबू वीर 100 फिट का प्रतिमा जगदीशपुर नया टोला मुख्य चौक पर बने, इसके लिए भी मैं हमेशा आवाज उठाते रहे हैं और मेरा प्रयास भी है।

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