Jaunpur News : आस्था व विश्वास का अनुपम केन्द्र है श्री महाकाली मंदिर शक्तिपीठ

Jaunpur News : आस्था व विश्वास का अनुपम केन्द्र है श्री महाकाली मंदिर शक्तिपीठ

वर्ष भर होती है यहां पूजा अर्चना, नगर सहित क्षेत्रवासियों को है अनूठा विश्वास

पुरातात्विक धरोहर के रूप में भी है इसकी पहचान दोनों नवरात्रों में रहता है मेले जैसा दृश्य

महारानी बलराजी कुँवरि ने स्वपन में मां काली का दर्शन मिलने पर कराया था मंदिर निर्माण

इस मंदिर से जुड़ी है कई राजे एवं रजवाड़ों की स्मृतियां

क्षेत्रीय नागरिकों एवं शासन प्रशासन सहित पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का दंश झेल रहा मंदिर

मुंगराबादशाहपुर से नवरात्र पर विशेष

अमित शुक्ला
मुंगराबादशाहपुर, जौनपुर। नगर के मध्य स्थित नगर तथा क्षेत्रवासियों के आस्था तथा विश्वास का केंद्र श्री महाकाली जी मंदिर भक्तों के लिए मनोवांछित फल दायी तीर्थ स्थल बना हुआ है जहां मां काली की कृपा पाने हेतु सैकड़ों भक्त श्रद्धा भक्ति के साथ प्रतिदिन यहां आकर दर्शन पूजन करते हैं तथा अपने व अपने परिवार की खुशहाली के लिए मां से प्रार्थना करते हुए मां के चरणों में शीश झुकाते हैं। यह तीर्थ पूर्वांचल का प्रसिद्ध सिद्धपीठ आस्था विश्वास का धाम एवं ऐतिहासिक शक्ति स्थल है। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह धरोहर चार जनपदों वाराणसी संत रविदास नगर (भदोही) जौनपुर प्रतापगढ़ एवं इलाहाबाद की सीमा पर स्थित है। यह तीर्थ इलाहाबाद से उत्तर 50 किलोमीटर वाराणसी से पश्चिम 110 किलोमीटर प्रतापगढ़ से पूरब 45 किलोमीटर तथा बदलापुर से दक्षिण लगभग 43 किलोमीटर पर अवस्थित है। इलाहाबाद से जौनपुर सड़क मार्ग पर इलाहाबाद से 50 किलोमीटर दूरी पर मुंगरा बादशाहपुर नगर पालिका परिषद स्थित है।

मुख्य चौराहे से नगर में जाने वाली मुख्य सड़क पर कुछ ही दूर पर यह शक्तिपीठ है। इसी प्रकार यह उत्तर रेलवे के वाराणसी प्रतापगढ़ लखनऊ रेलखंड पर बादशाहपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर अंदर बाजार में है। श्री महाकाली जी मंदिर के मुख्य पुजारी महावीर महाराज ने बताया कि जौनपुर गैजेटियर एवं सर की राज जौनपुर के इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि प्रतापगढ़ जनपद में बच्छगोती ठाकुरों की बड़ी भूत संपत्ति रायपुर बछोर के नाम से स्थापित थी। रायपुर बछोर के राजा पृथ्वीपाल सिंह की सन 1866 ईस्वी में मृत्यु हो गई थी। उनके पुत्रों ने आपस में भू संपत्ति को बांट लिया था सबसे छोटे पुत्र राय विशेश्वर सिंह के अधिकार में जो घूम आई उसमें परगना गढ़वारा जखनिया तालुका भी था राय बिसेसर सिंह का भी सन 1898 में देहांत हो गया। इनकी विधवा ठकुराइन बलराजि कुंवरि इनकी समस्त संपत्ति की अधिकारी हुई जो अपनी जन्मभूमि दाउदपुर को छोड़कर मुंगरा बादशाहपुर में रहने लगी।

उन्होंने इस नूतन निवास पर एक विराट भवन बनवाया। इसी के साथ दे वाले भी निर्मित कराया। श्री महाकाली जी मंदिर स्थापत्य कला दर्शनीय है। 50 फीट ऊंचा फाटक जिसमें लोहे का दरवाजा लगा है। फाटक के ऊपर दो विशाल मछलियां बनी हुई है। मछलियों की आंखों पर हीरो की तरह प्रतीत होता हुआ कोई चमकीला धातु लगा हुआ है। दोनों मछलियों के बीच में चमकीला अष्टदल कमल बना हुआ है जो शुभ का सूचक है। स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। फाटक के अंदर प्रवेश करने पर 5 शेयरों वाले भव्य मंदिर का दर्शन होता है। धातु से जय मां काली लिखा हुआ वाक्य सामने दृष्टिगोचर होता है। स्थापत्य कला एवं वास्तु की दृष्टि से ब्रह्म ज्ञान पर श्री महाकाली जी की दिव्य तेजस्वी मूर्ति विराजमान है।

गर्भ ग्रह के चारों दीवारों पर भगवान के अवतारों यथा नरसिंह कूर्म, मत्स्य कृष्ण परशुराम वामन वारंग नारायण बलराम आदि अवतारों के साथ-साथ पुराणों पर आधारित प्रसंगों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। सामने की दीवार पर राम भक्त हनुमान की मूर्ति एवं विघ्न विनाशक गणेश जी की मूर्ति विराजमान है। अग्नेय कोण में स्थित भगवान अवघड दानी आशुतोष शिवशंकर विराजमान हैं। इसी के साथ भगवान पशुपतिनाथ नंदी संती अन्नपूर्णा देवी शिव जी के वामअंग में बैठी माता पार्वती शिव लिंग एवं नर्वदेश्वर शिव पिंडिया विराजमान है। ईशान कोण में स्थित मंदिर भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसमें प्रभु श्री राम लक्ष्मण माता सीता की मनोहारी मूर्तियां दो द्वारपाल व दक्षिण मुखी श्री राम भक्त हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। वायव्य कोण में स्थित मंदिर भगवान भास्कर सूर्य को समर्पित है। इसमें सात घोड़ों से सुसज्जित रथ पर भगवान भुवन भास्कर विराजमान हैं। पास में राधा कृष्ण की मूर्ति भी विराजमान है। नैऋत्य कौन में स्थित मंदिर विघ्नहर्ता गणेश जी को समर्पित है। इसमें पास में ही मां शीतला देवी जी की मूर्ति स्थापित है। इस प्रकार 5 भव्य श्री करो में योग्य मंदिर पंचदेव को समर्पित है।

शैव, वैष्णव, सौर, शक्ति, गणपतय, पंचदेव उपासना का अनूठा संगम यह अद्भुत तीर्थ है। वासंती नवरात्र एवं शारदी नवरात्र में यहां का आकर्षण अत्यधिक बढ़ जाता है। दोनों ही नवरात्रों में यहां पर मंदिर की भव्य सजावट मां का भव्य श्रृंगार एवं नवरात्र महोत्सव के अंतर्गत दिव्य सत्संग का आयोजन होता है। इसमें रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, देवी भागवत, शिव महापुराण, योग्य वरिष्ठ श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों का विद्वान आचार्य द्वारा प्रवचन होता है। इस मंदिर पर श्री राम नवमी पर श्री राम जन्म एवं श्री कृष्ण जन्माष्टमी समारोह पूर्वक मनाई जाती है जिसमें नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण भाग लेते हैं। इस अवसर पर परिसर में स्थित पांचों मंदिरों की भव्य सजावट एवं भव्य श्रृंगार होता है।

भगवान श्री कृष्ण की छठी एवं श्री कृष्ण की बरही का आयोजन भी बड़े धूमधाम से किया जाता है। वर्तमान में इस मंदिर के पुजारी कुंदन महाराज जी है जो श्रद्धा से मां काली की सेवा में लगे हुए हैं। यह मंदिर राज्य परिवार से जुड़ा हुआ है। कभी इस मंदिर की व्यवस्था रजवाड़ों द्वारा की जाती थी। पूर्वज बताते हैं कि लगभग 150 सौ वर्षो पूर्व यह मंदिर जोधपुर के महाराजा राय विशेषर वक्त सिंह ने बनवाया था। मंदिर के पास ही राज महल बना था। पुल के अवशेष स्तंभ अभी कुछ वर्षों पूर्व तक विद्यमान थे। महाराजा राय विशेषर वक्त सिंह हाथी के ऊपर रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठ कर निकलते थे। यहां पर सात हाथिया और दर्जनों घोड़े रहा करते थे। इनकी दूसरी पत्नी बिलासी कुँवरि थी। इनकी एकमात्र पुत्री जनक कुँवरि थी । जिनका विवाह देवरिया के राजा कौशल किशोर से हुआ था। उस समय राजा अवधेश प्रताप मल मझौली के राजा थे। राय विशेश्वर वक्त सिंह के लड़के नहीं थे।

उन्होंने अपने रिश्तेदार बीरापुर स्टेट के कृष्णपाल सिंह और हरिपुर स्टेट के विश्वनाथ प्रताप सिंह को गोद ले लिया था। जो उस समय बहुत कम उम्र के थे। बीरापुर स्टेट के राजा कृष्ण पाल सिंह के लड़के बद्री पाल सिंह थे जिनकी पत्नी का नाम विक्टोरिया था। यह त्रिपोली या स्टेट सीतापुर की लड़की थी। रानी विक्टोरिया की एक बहन नेपाल नरेश महाराजा महेंद्र विक्रम साह से ब्याही थी और एक बहन काशीपुर स्टेट में ब्याही थी इनके लड़के केसी सिंह पूर्व विधायक रहे और विगत वर्षों अपने सहयोगियों के साथ मंदिर में दर्शनार्थ आए भी थे। बताया जाता है कि रानी बलराजि कुँवरि को देवी का स्वप्न हुआ था और दरबार में पधारे हिमालय की एक ऋषि की प्रेरणा से भगवती परांबा श्री महाकाली जी की स्थापना का विचार इन के ह्रदय में प्रकट हुआ था। मंदिर स्थापना के समय दक्षिण भारत से वैदिक विद्वान तथा काशी जी व विंध्याचल धाम से प्रसिद्ध वैदिक विद्वान यहां आए थे। पूर्वज बताते हैं कि मूर्ति स्थापना के समय मूर्ति में एक दिव्य तेज प्रगट हुआ था और एक बकरे की बलि भी दी गई थी।

फिर उसके पश्चात यहां कोई भी बलि नहीं दी गयी। मूर्ति में श्री महाकाली जी भगवान शंकर को एक पैर से दवाई है और बीच में से उनकी जिह्वा बाहर निकली है। ऐसा प्रतीत होता है कि रणांगण मैं मां काली का चरण भूलवश भगवान शंकर के ऊपर पड़ गया था और विश्व में बस मां काली जी की जी बाहर निकल आयी हो। बताया जाता है कि मंदिर में मां काली जी की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के समय मां काली के घुंघरू की आवाज भी आती थी। एक समय की बात है जब राजा साहब उच्च न्यायालय में चल रहे किसी मुकदमे में हार गए तो मंदिर की अखंड ज्योति अपने आप भूल गयी और जब ज्योति पुनः जला कर पूजन अर्चन किया गया तो मुकदमे में विजय मिली। इस मंदिर की शालिग्राम की मूर्ति और दक्षिणावर्त शंख बहुत ही प्रसिद्ध है।

मुक्तिनाथ दामोदर कुंड यात्रा एवं दामोदर हिमालय जहां शालिग्राम की मूर्ति प्राप्त होती है कि विशद यात्रा करने वाले भक्त कृष्ण गोपाल जी ने बताया कि ऐसे जीवंत शालिग्राम की मूर्ति अन्यत्र किसी भी मंदिर में देखने को नहीं मिलती। इस प्रकार की एक मूर्ति उनके पास भी है जो उन्हें गंडक नदी से प्राप्त हुई थी। पूर्व जी ने बताया कि एक बार रानी विक्टोरिया की छोटी सास शालिग्राम की मूर्ति व दक्षिणावर्त शंख लेकर प्रयागराज चली गई थी पूजा करते समय जलकर मर गई तो रानी साहब ने भगवान शालिग्राम की मूर्ति मंदिर में वापस पहुंचा दिया परंतु दक्षिणावर्त संघ का अब तक कोई पता नहीं चल सका। मां काली जी का भव्य भंडारा एवं सत्संग भवन मंदिर के बगल में बना है और पीछे भव्य फुलवारी की थी। इस मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित जीव बोध महाराज थे। उसके बाद उनके सुपुत्र पंडित रवि दत्त महाराज जी जीवन पर्यंत मां काली जी की सेवा एवं पूजन किया। इस मंदिर के साथ रजवाड़ा द्वार लोह और कोदहू ग्राम लगाया गया था जिसकी आय मंदिर को प्राप्त होती थी। डॉ गौरी शंकर सिंह मंदिर की देखरेख व मालगुजारी वसूल करने के लिए नियुक्त थे।

क्षेत्र के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य राम राज शुक्ला ने बताया कि उन विद्वानों में एक पंडित बहो सगत ने भविष्यवाणी किया था कि आज यहां दुंदुभी नगाड़ा बज रहा है। इतना सारा वैभव है किंतु जब काल के गाल में यह रजवाड़ा और स्टेट समाप्त हो जाएगा तो हे बादशाहपुर वालों, तुम इसकी देखभाल करना। श्री महाकाली जी का भव्य मंदिर काल के प्रवाह में उपेक्षित होकर अपने उद्धार के लिए नगर व क्षेत्र वासियों तथा शासन प्रशासन की बाट जोह रहा है। ऐसी मान्यता है कि जो भी मां का भक्त मंदिर में श्रद्धा भाव से आता है माँ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं।

आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार
हमारे न्यूज पोर्टल पर करायें सस्ते दर पर प्रचार प्रसार।

कोई भी विद्यार्थी छात्रवृत्ति से वंचित न रहे: जिलाधिकारी

Jaunpur News: Two arrested with banned meat

Job: Correspondents are needed at these places of Jaunpur

बीएचयू के छात्र-छात्राओं से पुलिस की नोकझोंक, जानिए क्या है मामला

Jaunpur News : 22 जनवरी को होगा विशेष लोक अदालत का आयोजन

पारिवारिक कलह से क्षुब्ध होकर युवक ने ​खाया जहरीला पदार्थ | #TEJASTODAY चंदन अग्रहरि शाहगंज, जौनपुर। क्षेत्र के पारा कमाल गांव में पारिवारिक कलह से क्षुब्ध होकर बुधवार की शाम युवक ने किटनाशक पदार्थ का सेवन कर लिया। आनन फानन में परिजनों ने उपचार के लिए पुरुष चिकित्सालय लाया गया। जहां पर चिकित्सकों ने हालत गंभीर देखते हुए जिला चिकित्सालय रेफर कर दिया। क्षेत्र के पारा कमाल गांव निवासी पिंटू राजभर 22 पुत्र संतलाल बुधवार की शाम पारिवारिक कलह से क्षुब्ध होकर घर में रखा किटनाशक पदार्थ का सेवन कर लिया। हालत गंभीर होने पर परिजन उपचार के लिए पुरुष चिकित्सालय लाया गया। जहां पर हालत गंभीर देखते हुए चिकित्सकों बेहतर इलाज के लिए जिला अस्पताल रेफर कर दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Read More

Recent