बारात
वर्तमान परिवेश के
लगभग पचीस-तीस साल पहले…
किसी बारात में जाना
गजब का अनुभव होता था
उन दिनों…. गांव में
बारात के लिए आमंत्रण
सम्मान की बात होती थी
आमंत्रित बाराती
तीन-चार दिन पहले ही
अपने कपड़े धोकर,
नील-टीनोपाल देकर…..
अक्सर बिस्तर के नीचे
तह लगाकर….सुरक्षित….
सिरहाने की ओर रख देते थे
फिर वजनदार लोटे में
गरम लाल कोयला डालकर
लोटे से उसे प्रेस किया करते थे
और बारात के दिन….
चंदन, टीका, सेंट लगाकर
गाते, बजाते और नाचते हुए
ट्रैक्टर या बस से
बारात के लिए निकलते थे
हर-हर महादेव का
उद्घोष करते हुए….
ट्रैक्टर का धक्का/उठा-पटक
तत्काल चर्चा का विषय बनता….
ट्रैक्टर के धक्के का बदला
उसी समय जीजा या फूफा से
मजाक कर ले ले लिया जाता
बस की यात्रा तो मौज से
दहला-पकड़ का आनंद लेते
पूरी की जाती थी….
बारात पहुँचते ही
हुल्लड़बाजी आम बात थी
चारपाई, गद्दे के लिए
मारा-मारी तो थी ही पर
सबसे ज्यादा चिंता
चप्पल-जूते की सुरक्षा की होती,
बारात में मिले सभी चीजों में
मीन-मेख निकालना….
खाने-पीने में
खाने से ज्यादा नुकसान करना
घरवालों से बे-अदबी
सामान्य सी बात होती…..
लाख खातिरदारी के बाद भी
बिना लड़े-भिड़े या फिर
बिना कहासुनी के….
बारात वापस हो जाना तो
सौभाग्य की बात होती
झगड़ा-लड़ाई तो बारात का
सगुन सा लगता….
बुजुर्गों के मान-मनौवल से ही
बारात वापस हो पाती
कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो तो
घराती-बराती का आपस में
टकराव होना निश्चित था….
कार्यक्रम निरहू, परदेसी का हो
या फिर आर्केस्ट्रा, नौटंकी या
किसी चर्चित स्टार का….
आज के दौर में तो मित्रों
बाराती भी मिलना कठिन है और
मिल भी गए तो बारात में
उनका रुकना बेहद कठिन है…
कभी उनकी गाय-भैंस तो
कभी परिवार अकेला होता है
खड़े-खड़े जाओ, खाओ और
चुपके से रवाना हो जाओ
आज का शगल है…
लोग….. इसी में मगन हैं….
इसीलिए मण्डप को भी अब
बारातियों की होती तलाश है
बंधुओं बारात के… आज के और
बीते दौर के सारे
खट्टे-मीठे अनुभव….
हम सबने देखा हैं पर मित्रों….
सच कहूँ तो….
पुरानी परम्पराओ में बसे
प्यार और अपनत्व के
व्यवहार में बड़ा ही सुकून है…
इसमें बड़ी ही मिठास है,
ऐसी परंपराओं से ही
जीवन में उल्लास है…..
ऐसा मेरा विश्वास है….
ऐसा मेरा विश्वास है…
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।
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