आखिर राज क्या है….?

आखिर राज क्या है….?

शहर के नुमाइश मैदान में,
सजी दुकानों पर…रुक कर…
हरिया ने देखा…..!
खूब बिक रहे थे….
डॉक्टर, वकील, जज साहब और
पुलिस वाले खिलौने……
बच्चों की पहली पसन्द थी…..
खाकी वर्दी में पुलिस वाला.. फिर..
सफेद एप्रन में आला लिए डॉक्टर
न्याय का हथोड़ा लिए जज साहब
बच्चों की तीसरी पसन्द थे……
काली-कोट में सफेद टाई लगाए..
वकील साहब बच्चों की पसन्द के
चौथे पायदान पर थे……
नुमाइश में यही खिलौने बच्चों के
सबसे ज्यादा पसंदीदा थे…..
सच माने तो नुमाइश में….
बस यही बिक रहे थे,
खिलौनों की शकल में….
बस दाम में ही…. वह भी……
वजूद के हिसाब से अंतर था….
दुकानदार भी खुश था,
नुमाइश मैदान में…..
माटी के इन पुतलों को बेचकर…!
संयोगवश…. नुमाइश मैदान से…
हरिया जब कचहरी आया…..
लंबित मुकदमे का जज साहब ने
अदालत में फैसला सुनाया….
फैसले ने हरिया को,
आईना दिखा दिया… और….
बड़ी आसानी से सब समझा दिया
अब किसी से… यह पूछने की…
हरिया को जरूरत भी नहीं रही…
कि नुमाइश में… सबसे ज्यादा….
माटी के यही खिलौने,
क्यों बिक रहे थे……?
हरिया तो अब विवश था….!
प्रश्नवाचक चिंतन में था…कि…
आदर्श समाज के.… ये नुमाइन्दा…
ये मूल-स्तंभ.. कर्ण-आधार..और..
अलमबरदार……
आखिर क्यों बिक रहे हैं….!
नुमाइश में भी और
जनता के दरबार में भी……!
इसके पीछे का राज क्या है…?
आखिर राज क्या है….?
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज

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