जातिवाद और निजी स्वार्थ से गाँव बना दलदल
अमित तिवारी
जौनपुर। सरायख्वाजा के सन्दहां गाँव में आजादी के उपरांत भी कोई सहारा नहीं गाँव के लोगों का कहना है कि गरीब लोगों को सहारा देने के लिए सरकार बड़े बड़े वादे करते हैं और इसी मुद्दे पर चुनाव भी जीतते है परन्तु चुनाव के बाद गरीब को नेता देखना भी पसंद नहीं करते और प्रशासन तो इस तरह से पेश आते है जैसे गरीब परिवार में जन्म लेना ही गुनाह है ये हम नहीं कहते बल्कि गाँव के हर गरीब परीवार कि आवाज गूंज रही है।
वर्षों बाद सन्दहां गाँव में गरीब और असहाय परिवार गाँव के विकास के लिए एक इमानदार व्यक्ति को गाँव का मुखिया बनाया गाँव तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ने लगा और 2 वर्ष के उपरांत उन्हें सत्ताधारीओ ने अपने सत्ता के मद में आकर और गाँव का विकास रोकने के लिए प्रधान को निलंबित कर दिया और फिर गाँव कि जिम्मेदारी उन्ही को मिल गई जिसको गरीब असहाय वर्षों से झेल रहे थे ।
जैसे ही प्रशासन गाँव को कार्यवाहक प्रधान को सौपते है कार्यवाहक प्रधान गाँव को उसी दिशा में ले कर भागने लगते है जिसका भुगतान गाँव के लोग आज भुगत रहे हैं जिसका कारण है आज सन्दहां गाँव में केवल सिंह साहब का घर छोड़कर कोई ऐसा घर नहीं है जहाँ घर से निकल कर मेन सड़क पर आना सात समुद्र पार करने के समान नहीं है और कोई ऐसा पूरा नहीं है जहाँ आसानी से कोई जा सकता है यह शासन प्रशासन के लिए प्रश्न चिन्ह है जिसे ध्यान देने की आवश्यकता है।
उसी गाँव में स्वार्थ और निजी जातिविशेष लोगो को कोई समस्या नहीं है चाहे कही कोने में एक घर भी हो वहाँ सरकार के लाखों रुपए खर्च कर सुविधा का लाभ कार्यवाहक प्रधान देने में संकोच नहीं करते हैं और गरीब पुरवा के लोग अपने हाथों से चक रोड और ईटों को बिछाते है और पैसा मनोनीत प्रधान सफाई से निकाल लेते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि कार्यवाहक प्रधान गाँव में जहाँ भी बरसात का पानी जाता था वहाँ वे मिट्टी पाटकर अपने सगे संबंधि के लिए रास्ते का निर्माण कर दिए जिससे केवटापार वासियों को आज सबसे ज्यादा समस्या है ज्यादा बारिश होने पर घरों में पानी भर जाता है और कयी दिनों तक उसी गन्दे पानी में जीवन भी अस्त व्यस्त हो जाता है।