प्रकृति एवं जीवन के अद्भुत संयोग का नाम है सावन

प्रकृति एवं जीवन के अद्भुत संयोग का नाम है सावन

अनुराग दीप
प्रकृति एवं जीवन के अद्भुत संयोग का नाम ही सावन मास है जिसमें जल, जंगल और जमीन के पालनकर्ता देवाधिदेव महादेव की विशेष पूजा-अर्चना का प्रावधान विभिन्न ग्रंथों में उल्लेखित किया गया है। सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के रूप में देशभर विभिन्न रूपों तथा प्रथाओं के अनुसार मनाता है। श्रावण मास वर्षा, हरियाली, कृषि कार्यों सहित आत्मिक उल्लास तथा आंतरिक ऊर्जा का भी मार्ग प्रशस्त करता है। सर्प आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, वरन् विज्ञानिक तौर पर भी जीवन कर्म के चक्र का महत्वपूर्ण अंग हैं। पंचमी के दिन नाग का दर्शन अति शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन नागों की पूजा करने से सर्प द्वारा काटे जाने का भय नहीं होता।
पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि लीलाधर नाम का एक किसान था जिसके 3 पुत्र तथा 1 पुत्री थी। एक दिन सुबह जब वह अपने खेत में हल चला रहा था, उसके हल से सांप के बच्चों की मौत हो गई। अपने बच्चों की मौत को देखकर नाग माता को काफी क्रोध आया और नागिन अपने बच्चों की मौत का बदला लेने किसान के घर गई। रात को जब किसान और उसका परिवार सो रहा था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके बेटों को डस लिया और सभी की मौत हो गई। किसान की पुत्री को नागिन ने नहीं डसा था जिससे वह जिंदा बच गई। दूसरे दिन सुबह नागिन फिर से किसान के घर में किसान की बेटी को डसने के इरादे से गई। उसने नाग माता को प्रसन्न करने के लिए कटोरा भरकर दूध रख दिया तथा हाथ जोड़कर प्रार्थना की और माफी मांगी।
उसने नागिन से उसके माता-पिता को माफ कर देने की प्रार्थना की। नाग माता प्रसन्न हुई तथा सबको जीवनदान दे दिया। इसके अलावा नाग माता ने यह आशीर्वाद भी दिया कि श्रावण शुक्ल पंचमी को जो महिला नाग देवता की पूजा करेगी, उसकी कई पीढ़ियां सुरक्षित रहेंगी, तब से नागपंचमी पर नागध् सांप को पूजा जाता है। प्रकृति एवं जीवन के अद्भुत संयोग का नाम ही सावन मास है जिसमें जल, जंगल और जमीन के पालनकर्ता देवाधिदेव महादेव की विशेष पूजा-अर्चना का प्रावधान विभिन्न ग्रंथों में उल्लेखित किया गया है। सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी के रूप में देश भर विभिन्न रूपों तथा प्रथाओं के अनुसार मनाता है।
श्रावण मास वर्षा, हरियाली, कृषि कार्यों सहित आत्मिक उल्लास तथा आंतरिक ऊर्जा का भी मार्ग प्रशस्त करता है। सर्प आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, वरन् विज्ञानिक तौर पर भी जीवन कर्म के चक्र का महत्वपूर्ण अंग हैं। वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही धान की रोपाई से लेकर हरियाली के बीच ही सांपों का वास रहता है। सर्प सदैव से मनुष्य के मित्र रहे हैं, इसीलिए वेद, ज्योतिष, चिकित्सा तथा भौतिक जीवन में उनके विशेष योगदान का वर्णन किया गया है।
दुनिया भर में पाए जाने वाले तकरीबन तीन हजार सांपों की प्रजाति में से भारत में 69 सर्प जहरीले होते हैं जिसमें से 29 समुद्री तथा 40 स्थलीय हैं। सनातन मान्यता के अनुसार सर्प को पौराणिक काल से ही देव रूप में पूजा जाता रहा है। पुराणों के मतानुसार इनके दो प्रकार बताए गए हैं। दिव्य तथा भौम। जिसमें से दिव्य श्रेणी में अनंत, वासुकी, तदाक, कर्कोटक, पदम, महापदम, शंखपाल तथा कुलिक का उल्लेख है। इन्हें पृथ्वी का भार उठाने वाला तथा प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी कहा गया है। इन आठ दिव्य सर्पों में क्रमश दो-दो ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र वर्ण के हैं।
इस बार ज्योतिष गणना के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र तथा शिव योग बन रहा है।

यह अत्यंत मंगलकारी संयोग बनाता है। आइए हमारे जीवन क्रम के देव मित्र सर्प के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु प्रयास करने का संकल्प लें। कृषि प्रधान भारत को ऐसे ही नहीं सांप और सपेरों का देश कहा जाता है। वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही धान की रोपाई से लेकर हरियाली के बीच ही सांपों का वास रहता है। सर्प सदैव से मनुष्य के मित्र रहे हैं, इसीलिए वेद, ज्योतिष, चिकित्सा तथा भौतिक जीवन में उनके विशेष योगदान का वर्णन किया गया है।
दुनिया भर में पाए जाने वाले तकरीबन तीन हजार सांपों की प्रजाति में से भारत में 69 सर्प जहरीले होते हैं जिसमें से 29 समुद्री तथा 40 स्थलीय हैं। सनातन मान्यता के अनुसार सर्प को पौराणिक काल से ही देव रूप में पूजा जाता रहा है। पुराणों के मतानुसार इनके दो प्रकार बताए गए हैं। दिव्य तथा भौम। जिसमें से दिव्य श्रेणी में अनंत, वासुकी, तदाक, कर्कोटक, पदम, महापदम, शंखपाल तथा कुलिक का उल्लेख है। इन्हें पृथ्वी का भार उठाने वाला तथा प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी कहा गया है। इन आठ दिव्य सर्पों में क्रमश दो-दो ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र वर्ण के हैं।
क्या न करेंः-
– नागपंचमी पर नाग को दूध न पिलाएं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि नाग को दूध पिलाने से उनकी मौत हो जाती है और मृत्यु का दोष लगने की मान्यता है।
– इन दिनों मिट्टी की खुदाई पूरी तरह से प्रतिबंधित रहती है।
– मान्यतानुसार नाग का फन तवे के समान होता है। अतः नागपंचमी के दिन तवे को चूल्हे पर चढ़ाने से नाग के फन को आग पर रखने जैसा होता है, इसीलिए इस दिन कई स्थानों पर तवा नहीं रखा जाता।
इस बार ज्योतिष गणना के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र तथा शिव योग बन रहा है। यह अत्यंत मंगलकारी संयोग बनाता है। आइए हमारे जीवन क्रम के देव मित्र सर्प के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु प्रयास करने का संकल्प लें। कृषि प्रधान भारत को ऐसे ही नहीं सांप और सपेरों का देश कहा जाता है।
(लेखक प्राणिक हीलिंग तथा वैदिक ज्योतिष हैं)

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