निशिचर...
देखा न भले कभी हमने...!
निशिचर की माया से,
देवों को होता पस्त....
मगर किताबों में पढ़ते आये,
निशिचर अक्सर करते रहते थे,
सब देवों को त्रस्त...
खण्डित करते यज्ञ कभी ये,
कभी तो कर देते रवि को अस्त...
ताड़ना से इनके...अक़सर...!
त्राहि-त्राहि करते दिखते सब भक्त...
अट्टहास करते...