कहानी: पंख होते तो…

कहानी: पंख होते तो…

आज फिर वही उदासी!
मेधा फ्लैट की बॉलकनी में आकर खड़ी हो गई। मंद मंद हवा उसके खुले बालों से अठखेलियां करने लगी। समीर को ये उसके बालों की ये अठखेलियां बेहद पसंद थी। वह कार ड्राईव करते हुए अक्सर खिड़की का शीशा खोल देता ताकि खुली हवा आकर मेधा के बालों से खेल सके। मेधा झल्ला जाती। “अरे शीशा क्यूँ खोला मेरे सारे बाल खराब हो जाएंगे और मेरा मेकअप भी! बंद करो शीशा!” इस पर समीर पहले तो मुस्कुराता और फिर खिलखिला कर हंस पड़ता।
“अरे यार दुबारा बाल बना लेना! तुम्हारी यह खूबसूरत जुल्फें हवा से खेलती हुई कितनी प्यारी लगती है इन्हें यूं ही खेलने दो!” और समीर शरारत से गुनगुना उठता। ये रेशमी जुल्फें ये शरबती आँखें… मेघा जबरदस्ती शीशा बंद करवा देती पर समीर का गुनगुनाना रास्ते भर जारी रहता। आज नेहा के घर पार्टी थी। मेधा को पार्टीस में जाना जितना पसंद था समीर उतना ही इस पार्टीस से दूर भागता था परंतु फिर भी कभी कभी मेधा का दिल रखने के लिये साथ चल पड़ता। मेधा को जिन्दगी का हर पल उमंग से जीना पसंद था और इसके विपरीत समीर को घर बैठना!
मेधा को स्टेट्स सिंबल पसंद था और समीर को सादगी। भले ही दोनों का प्रेम विवाह हुआ था परंतु दोनों नॉर्थ पोल और साऊथ पोल की तरह विपरीत ध्रुवों की तरह ही थे। समीर और मेधा एक ही कॉलेज में पढ़ते थे लेकिन कभी एक दूसरे से बात नहीं हुई थी। समीर की लियाकत और शराफत के सभी कायल थे। एक दिन कॉलेज की कैन्टीन में चाय पीते हुए समीर के दोस्तों में से सबसे शरारती दोस्त उज्ज्वल ने दूसरे दोस्तों को चैलेंज किया कि
“जो सामने ग्रुप में बैठी लडकियों में से किसी एक को गुलाब देगा, उसकी एक महीने की चाय का बिल मैं भरुंगा।”
सब हो हो कर हँस पड़े। समीर इन बचकानी बातों से सदा दूर रहता था। उज्ज्वल ने उसे चैलेंज किया तो वह तैश में उठकर लडकियों की टेबल की ओर बढ़ तो गया पर घबराहट में कुर्सी से उठती हुई मेधा से टकरा गया। हड़बड़ाहट में उसने मेधा को सॉरी कहा और गुलाब उसकी ओर बढ़ा दिया। लड़कों के ग्रुप में जोरदार सीटी बजी और हुर्रे! की आवाज के साथ ही उन्होंने समीर को कंधे पर उठा लिया। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि समीर को कुछ सोचने समझने का अवसर ही न मिला। मेधा पहले तो कुछ समझी नहीं और जब समझ आई तो खूब हँसी और इस तरह मेधा और समीर एक दूसरे के करीब आ गये।
घर वालों को पता चला तो उन्हें भी ये जोड़ी खूब जँची। समीर की नौकरी लगते ही दोनों प्रणयसूत्र में बंध गये। समीर सुबह ऑफिस जाता और देर शाम थका मांदा घर लौटता। मेधा ने बोरियत से बचने के लिये दो तीन किटी पार्टीस ज्वायन कर ली। मेधा रविवार को कहीं जाए समीर को यह कतई पसंद नहीं था। वह चाहता था कि छुट्टी वाले दिन मेधा पूरा समय उसी के पास रहे। मेधा को पार्टी छोड़ यूँ घर में बैठना बोरिंग लगता पर समीर का दिल रखने के लिये वह रविवार को कहीं जाना एवायड करती। अगर कभी जाना भी पड़ जाता तो समीर मुँह फुला कर बैठ जाता और दोनों का पूरा रविवार बर्बाद हो जाता।
हाँ! समीर महीने में एक आध बार शनिवार की लेट नाईट पार्टी में मेधा के साथ जरुर चला जाता, ताकि दोनों दोस्तों के साथ कुछ समय बिता सकें। टियारा के होने के बाद भी मेधा के व्यवहार में कोई फर्क न आया। उसे तो ये सब झंझट ही लगते, इसलिए उसने फुल डे मेड रखकर सब झंझटों से मुक्ति पा ली परंतु समीर को टियारा के प्रति उसकी ये रुखाई बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं होती थी। इसी बात पर अक्सर दोनों की कहा सुनी भी हो जाती।
“अब तुम माँ बन गई हो । तुम्हें अपना अधिक समय टियारा को देना चाहिए।”
समीर की इस बात पर मेधा उखड़ जाती और गुस्से से दनदनाती हुई बेडरूम में चली जाती और रोते रोते सो जाती या फिर तैयार होकर पार्टी में चली जाती। दोनों ही सूरतों में टियारा ही सफ़र करती। एक दिन बात इतनी बढ़ गई कि समीर 15 दिन की छुट्टी ले टियारा को अपने होम टाऊन उसके दादा दादी के पास ले गया। “अब हम कुछ दिन दादा दादी के साथ स्पेंड करेंगे। वहाँ हम खूब मस्ती करेंगे!” समीर ने टियारा को मेंटली तैयार करने की कोशिश की। “और मम्मा!” “मम्मा को यहाँ जरुरी काम है तो मम्मा बाद में आ जाएंगी।”
समीर ने टियारा को प्यार से समझाया तो वह मान गई। मेधा उस समय गुस्से से इतनी भरी बैठी थी कि उसने एक बार भी दोनों को नहीं रोका। जाते जाते टियारा मेधा के पास आई और उससे लिपटते हुए बोली— “मम्मा जल्दी आना!” नन्हीं बच्ची का स्नेह भी मेधा को भिगो नहीं पाया। दो दिन तक तो मेधा गुस्से में रही। तीसरा दिन शुरु होते होते खाली घर उसे खाने को दौड़ने लगा। बेचैन हो वह बाहर बॉलकनी में आकर खड़ी हो गई।
पार्क में खेलते बच्चों को देख बरबस ही उसकी आँखे भर आई। वह कितनी देर तक उन्हें निहारती रही और टप टप आँसू उसके चेहरे को भिगोते रहे। मंद मंद बहती हवा उसे छूकर मानो समीर के प्यार की याद दिला रही थी। उसने उड़ती जुल्फों को प्यार से यूं सहलाया जैसे समीर सहलाया करता था। उसने खुली जुल्फों में ही आँसू भरी आँखों से सेल्फी खींची और समीर को सेंड कर दी। सेल्फी के नीचे लिखा। “पंख होते तो उड़ आती रे!” समीर जैसे उसके मेसेज का ही इंतजार कर रहा था। उसने झट बड़ा सा दिल उसे सेंड किया और साथ ही प्यारी सी स्माईली भी।
मेधा के उदास चेहरे पर भी स्माईल आ गई। इतने में ही समीर का फोन भी आ गया। मेधा के हेलो बोलते ही समीर धीरे से फुसफुसाया। “मिस यू!” “मिस यू टू!” कहते हुए मेधा की रुलाई फूट पड़ी। समीर ने प्यार से कहा। “जल्दी आ जाओ। हम सभी को तुम्हारा इंतजार है। इस बार दीवाली सभी यहीं मिलकर मनाएंगे। अच्छा लो टियारा से बात करो।” “हेलो! हाँ टियारा बेटा! मम्मा कल ही आ रही है तुम्हारे पास! हमेशा के लिये!”
अंजू खरबंदा, दिल्ली—9

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