भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद भी कार्यवाही न होना चिंता का विषय
जिला अस्पताल बनता जा रहा व्यवसायिक प्रतिष्ठान
संदीप पाण्डेय
रायबरेली। अगर चिकित्सा से जुड़े अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएं और मरीजों के शोषण के बदले पैसा कमाए तो आम जनता कहां जाएगी? अगर ऐसे कर्मचारियों के ऊपर कारवाई नहीं हो रही है तो आप समझ जाइए कि हमाम में सब नंगे हैं। रायबरेली का जिला अस्पताल आए दिन पैसे लेने के वीडियो वायरल होते हैं। मरा बच्चा देने पर पैसे लेने के नाम पर बवाल होता है, मरीजों के तीमारदारों के साथ कर्मचारियों के द्वारा मारपीट की जाती है, बाहर के इंजेक्शन और दवाइयां लिखी जाती हैं, आपरेशन के नाम पर लूट घसोट की जाती है, साथ ही कोरोना टेस्ट के नाम पर भर्ती मरीजों से वसूली की जाती है। इन सब मामलों के उजागर होने के बाद भी कार्रवाई न होना चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि मंचों से खड़े होकर ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले भाजपा के नेता कौन हैं और अधिकारियों ने आंखों में पट्टी क्यों बांध रखी है।
आज फिर आपरेशन थिएटर में मौजूद एक कर्मचारी का पैसा लेकर जेब में रखने का वीडियो वायरल हो रहा है। अभी तक महिला चिकित्सालय के अंदर कई ऐसे मामले आए हैं जिसमें तीमारदारों ने खुले तौर पर कैमरे में पैसा देने की बात स्वीकारी लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। आपरेशन थिएटर में साफ देखा जा सकता है कि एक कर्मचारी मरीज के तीमारदार से पैसा लेता है और अपनी जेब में रख लेता है, आखिर इसने किस बात का पैसा लिया है, इसकी पुष्टि कैसे हो और इस कर्मचारी के द्वारा पैसा लेने का अधिकार क्या है। फिर भी आपरेशन थिएटर के अंदर पैसे की क्या आवश्यकता है। अभी कुछ दिन पहले दूसरे जिले में तैनात रायबरेली के निवासी एक सीडीओ की मां को बाहर का इंजेक्शन लिखे जाने पर भाजपा नेता ने विरोध किया। उनके विरोध पर डीएम वैभव श्रीवास्तव ने अस्पताल में निरीक्षण किया लेकिन कुछ हुआ नहीं। इस तरह के मामलों में उच्च अधिकारियों द्वारा निरीक्षण करके लोगों को शांत करा दिया जाता है और फिर से काम उसी तरह चलने लगता है। जिला अस्पताल अब व्यवसायिक प्रतिष्ठान बनता जा रहा है जहां तैनात कर्मचारी और स्वास्थ्य कर्मी अपनी दुकानें चला रहे हैं।
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