मुम्बई की लोकल
मुंबई की मैं लोकल हूँ,
नाता तो पुराना है।
ये जीवन का सफर ऐसा,
आना और जाना है।
दिन-रात दौड़ती हूँ,
इतनी-सी कहानी है।
मेरी आँख में है दरिया,
होंठों पे जवानी है।
मुझे अपने ही लोगों को,
मंजिल पहुँचाना है,
मुंबई की मैं लोकल हूँ,
नाता तो पुराना है।
ये जीवन का सफर ऐसा,
आना और जाना है।
बसते हैं हुनरवाले,
चेहरे ये गुलाबी हैं,
रिश्तों के लिबासों में,
लगते नायाबी हैं।
मेहनत की बदौलत ही
आब-ओ-दाना पाना है,
मुंबई की मैं लोकल हूँ,
नाता तो पुराना है।
ये जीवन का सफर ऐसा,
आना और जाना है।
जो चोट लगी दिल पे,
वो चोट पुरानी है।
कुछ अपने ही लोगों की,
इसमें नादानी है।
मुझे अपनी नजाकत को,
गैरों से बचाना है,
मुंबई की मैं लोकल हूँ,
नाता तो पुराना है।
ये जीवन का सफर ऐसा,
आना और जाना है।
रामकेश एम. यादव
(कवि/साहत्यिकार) मुम्बई
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