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श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज का शहीदी दिवस मना

श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज का शहीदी दिवस मना

आरएल पाण्डेय
लखनऊ। धर्मरक्षक, महान तपस्वी, हिन्द की चादर सिखों के नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज का पावन शहीदी दिवस ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी नाका हिण्डोला लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया।
इस मौके पर शाम का विशेष दीवान 6.00 बजे रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ जो रात्रि 9.30 बजे तक चला जिसमें रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने अपनी मधुर बाणी में -साधन हेति इती तिनि करी।। सीसु दीआ पर सी न उचरी।। शबद कीर्तन गायन एवं समूह संगत को नाम सिमरन करवाया।

मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने साहिब श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री गुरू तेग बहादुर जी का बाल्यावस्था का नाम त्यागमल था जो उनके विरक्त स्वभाव के अनुरूप था पैंदे खाँ नाम के एक कृतघ्न एवं विश्वासघाती पठान ने जब अपनी सेना के साथ श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब पर अकारण आक्रमण किया तो त्यागमल जी ने अपनी तेग (तलवार) से ऐसे जौहर दिखाए कि तभी से उनका नाम ‘‘तेग बहादर’’ पड़ गया। श्री गुरू तेग बहादर जी ने पुनः मानवीय स्वतंत्रता के महान आदर्श के लिये आत्म बलिदान देकर ‘‘त्यागमल’’ नाम को भी सार्थक कर दिखाया।

जितना श्री गुरू तेग बहादुर जी तपस्वी, त्यागी, निरभयता, निरवैरता, कर्मनिष्ठा और कुर्बानी की दिव्य मूर्ति थे, उतना ही औरंगजेब अधर्मी, अभिमानी और अत्याचारी था। औरंगजेब के आदेश पर जब भारत में जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था तो कश्मीर के ब्राह्मण कृपाराम जी की अगुवाई में गुरु तेग बहादुर जी से मिले और उनसे अपने धर्म की रक्षा के लिए फरियाद की तब गुरु तेग बहादुर जी महाराज ने कहा कि औरंगजेब से कह दो कि हमारे गुरु गुरु तेग बहादुर हैं। यदि वह धर्म परिवर्तन कर लेंगे तो हम सब भी धर्म परिवर्तन कर लेंगे तब औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली की शाही फौज ने गुरु तेग बहादुर जी महाराज को आगरा में गिरफ्तार किया और दिल्ली में लाएं।

उसने श्री गुरू तेग बहादुर के सामने तीन शर्ते रखीं-इस्लाम कबूल करो, कोई करामात करके दिखाओ या फिर मरने के लिये तैयार रहो। उन्होंने अत्याचारी चुनौतियों का दृढ़तापूर्वक सामना किया और हिंदू धर्म, राष्ट्र की रक्षा और मनुष्य मात्र की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में सन् 1675 में विशाल जन समूह के सामने अपना शीश देकर बलिदान दे दिया। श्री गुरु तेग बहादुर जी का आत्म बलिदान केवल इस प्रण को निभाने मात्र के लिये ही नहीं था। वे आस्था, सिद्धान्त एवं भारत वर्ष की संस्कृति और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये शहीद हुए। तभी से गुरू तेग बहादुर जी को ‘‘तेग बहादुर हिन्द की चादर’’ भी कहा गया है। भाई दयाला जी, भाई सती दास जी, भाई मती दास जी ने भी शहादत दी। सिमरन साधना परिवार के बच्चों ने तेग बहादुर सिमरिअै घर नउ निधि आवै धाइि।। शबद गायन कर समूह संगत को निहाल किया। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया।

दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष स0 राजेन्द्र सिंह ने गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए एवं समूह संगत को गुरू जी द्वारा बताये मार्गाे पर चलने का आग्रह किया। उसके उपरान्त हरमिन्दर सिंह टीटू एवं कुलदीप सिंह सलूजा की देख—रेख में दशमेश सेवा सोसाइटी के सदस्यों द्वारा गुरू का लंगर समूह संगत में वितरित किया गया।

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