Jaunpur News: विकास का पहिया इतनी धीमी कि 117 साल पहले बने स्टेशन पर आरक्षण खिड़की नहीं

Jaunpur News: विकास का पहिया इतनी धीमी कि 117 साल पहले बने स्टेशन पर आरक्षण खिड़की नहीं

19वीं सदी में सबसे चर्चित स्टेशनों में शुमार था डोभी रेलवे स्टेशन

विनोद कुमार
चंदवक, जौनपुर। केराकत तहसील के आंचलिक क्षेत्र में स्थित डोभी का रेलवे स्टेशन सदियों से सरकारों द्वारा उपेक्षित रहा है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समेटे इस क्षेत्र का योगदान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय रहा है। डोभी क्षेत्र आजादी के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों का भी केंद्र रहा है लेकिन आज यही डोभी क्षेत्र अपने बेबसी पर दुख व्यक्त करने के अलावा कुछ भी करने में असमर्थ है। ज्ञात हो कि ब्लाक डोभी अंतर्गत बना डोभी रेलवे स्टेशन का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। डोभी के इतिहास की बात करें तो एक तस्वीर उभर कर सामने आती है कि डोभी शूरवीरों की धरती रही हैं। डोभी क्षेत्र का सेनापुर गांव सन 1857 की क्रांति का गवाह है।

22 किलोमीटर की आबादी वाले संत शिरोमणि बाबा कीनाराम की इस धरती पर बाबा गणेश राय, प्रो. आरडी सिंह, प्रो.रामउग्रह सिंह, प्रो. बटुक सिंह, मुखराम सिंह जैसी अनगिनत विभूतियों ने जन्म लिया जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर और देश-विदेश में देश व जनपद के नाम रोशन किया। इन विभूतियों का अमर इतिहास जानकर व पढ़कर क्षेत्रवासियों को गौरव महसूस होता है, इसलिए इस स्टेशन का स्थान गौरवशाली है और यह रेलवे स्टेशन अपने आप में बहुचर्चित स्टेशनों में शुमार भी है।
इस रेलवे स्टेशन का गौरवशाली इतिहास यह दर्शाता है कि इस स्टेशन का निर्माण आजादी के 43 साल पहले यानी 21 मार्च 1904 में किया गया था तब से लेकर आज तक 117 बीत जाने के बाद आज तक इस रेलवे स्टेशन पर रिजर्वेशन काउंटर की सुविधा उपलब्ध न हो सकी है जिसका खामियाजा यहां की जनता भुगत रही है।

हालांकि 2010-11 में पुननिर्माण करवाया गया और सोमवार को रेलवे सुरक्षा आयोग के आयुक्त मो. लतीफ खान द्वारा बारीकी से निरीक्षण भी किया गया। गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद भी यह रेलवे स्टेशन उपेक्षाओं का शिकार रहा है। वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग पर स्थिति होने से इसका विशेष महत्व है। भाजपा सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान रेलवे राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के अथक प्रयासों से डोभी रेलवे स्टेशन पर दिल्ली, मुम्बई और गुजरात के लिए चलने वाली ट्रेनों का ठहराव होने लगा है जिससे क्षेत्र के यात्रियों को सुविधा उपलब्ध तो हुई है परंतु रिजर्वेशन काउंटर न होने से उन्हें आरक्षित टिकट के लिए 45-50 किलोमीटर दूर वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़ अथवा औड़िहार जाना पड़ता है। आबादी के लिहाज से 4 जिलों को जोड़ने वाला एक डोभी रेलवे स्टेशन मात्र ऐसा रेलवे स्टेशन है जिसकी कुल आबादी लगभग पांच लाख की है।

डोभी का योगदान भारत के स्वंतत्रता आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय रहा
सरकारी उपेक्षाओं का शिकार यह रेलवे स्टेशन आजादी के 75 साल बाद भी रिजर्वेशन काउंटर के लिए बेबसी के आंसू बहा रहा है। आजादी के बाद विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की सरकारें आईं और सत्ता सुख भोग कर चलती बनी लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार ने इस ऐतिहासिक धरोहर की सुधि नहीं ली। हर पांच साल में चुनाव होते हैं, रैलियां आयोजित की जाती हैं और बड़े-बड़े वादे भी किए जाते हैं लेकिन जिन जनप्रतिनिधियों को जनता अपना बहुमूल्य वोट देकर संसद व विधानसभा यह सोचकर भेजती है कि उनका रहनुमा क्षेत्र के विकास में अपना योगदान देगा परंतु जनता का सपना तब चूर-चूर हो जाता है जब जनप्रतिनिधि सांसद और विधायक जीतने के बाद क्षेत्र में आना तौहीन समझते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 117 साल पहले बने रेलवे स्टेशन पर रिजर्वेशन काउंटर का नहीं हो पाना। सरकार की प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि क्षेत्र की जनता को आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई डोभी की जनता अपने जनप्रतिनिधियों से उम्मीद करती है कि यथाशीघ्र डोभी रेलवे स्टेशन पर रिजर्वेशन काउंटर की सुविधा उपलब्ध कराई जिससे यहां की जनता को वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़ और गाजीपुर जाने में लगने वाले बेवजह समय की बचत हो और अनावश्यक रूप से होने वाली असुविधाओं से सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

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