मैं भारत का संविधान हू…
मैं कानूनी लक्ष्मण रेखा हूँ,
बाबा साहेब का लेखा हूँ।
आजादी की विजय पताका,
फ्रीडम फाइटर देखा हूँ।
अमर शहीदों के माथे का चन्दन,
लोकतंत्र का उदबोधन हूँ।
देता सबको समता का अधिकार,
धुंधली आँखों का अंजन हूँ।
दंड विधान, न्यायालय मुझमें,
मैं एक सुनहला विधान हूँ।
उखाड़ा मैंने असमानता जड़ से,
मैं सबकी मुस्कान हूँ।
सबके हितों की रक्षा करता,
मैं भारत का विधान हूँ।
न्याय पक्ष उदघाटित करता,
लोकतंत्र का वरदान हूँ।
बोझ उठाओ अपना-अपना,
मैं सबकी पहचान हूँ।
बने देश यह महाशक्ति,
मैं देश की आन हूँ।
रामकेश एम. यादव ‘सरस’ मुम्बई
(कवि व लेखक)
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