मैं ठीक हूं….
कैसे हो….?
ठीक हूँ….और तुम….?
मैं भी ठीक हूँ….
महज दस शब्दों के ये अल्फाज
अक्सर विवश कर देते हैं
यह सोचने के लिए कि
क्या वास्तव में….?
जीवन में इतनी सहजता है,
और इतना माधुर्य है….
वैसे तो सुना है कि……
मानुष जाति तो डरती है
सन्नाटे से भी और
कोलाहल से भी….
फिर अफवाहों की,
इस आभासी दुनिया में…
जहाँ शक और एतवार का,
नफरत और प्यार का,
प्रेम और विश्वास का
द्वन्दध्कश्मकश जारी हो
फिर इतना सुकून,
कहाँ सम्भव है……?
इसलिए विचार करो मित्रों….
कहीं ऐसा तो नहीं….कि….
लोग मुखौटे लगाकर
जिंदगी जी रहे हैं…और…
जिंदगी के रंगमंच पर
खुद को धोखे में रखकर
बेहद चतुराई से….!
अभिनय कर रहे हैं….
खुद को धोखे में रखकर
बेहद चतुराई से….!
अभिनय कर रहे हैं…..
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर, जनपद-जौनपुर।