विपिन मौर्य एडवोकेट मछलीशहर, जौनपुर। धान की फसल में कंडुआ रोग का प्रकोप शुरु होते ही क्षेत्रीय किसानों की चिंता बढ़ गई है। रोग से बचाव व उपचार के लिये किसान दवाओं के चिड़काव में जुट गये हैं। खरीफ की प्रमुख फसल धान के लिये इस बार आरम्भ से ही अच्छी वर्षा होने से किसानों को इससे बेहतर उत्पाद की उम्मीद थी लेकिन अक्टूबर माह शुरु होते ही अचानक कंडुआ रोग का प्रकोप शुरु हो गया। जुड़ऊपुर निवासी प्रगतिशील किसान अयोध्या प्रसाद यादव ने बताया कि कंडुआ (फाल्स स्मट) रोग एक प्रमुख फंफूद जनित रोग है। इसका प्राथमिक संक्रमण बीज से होता है, इसलिये धान की खेती में बीज शोधन करना आवश्यक है।
इसके प्रकोप से धान की बालियों के दाने की जगह पीले रंग का बाल बन जाता है। इसके बाद यह काले रंग का हो जाता है। इसे हल्दिया रोग भी कहते हैं। अगर तापमान अधिक हो और हवा में आर्द्रता हो तो यह रोग तेजी से फैलता है। इस रोग से ग्रसित चावल खाने से स्वास्थ्य पर भी भारी असर पड़ता है। फसल रोग विशेषज्ञ अजय सिंह ने बताया कि यह रोग अक्टूबर से नवम्बर माह में धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में लगता है। कंडुआ रोग अस्टीलेज नाइडिया वीरेन्स से उत्पन्न होता है। जिस खेत में युरिया का प्रयोग अधिक होता है और वातावरण में काफी नमी होती है, उस खेत में यह प्रमुखता से आता है। धान की बालियां निकलने पर इस रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इस रोग से धान की फसल में 60 प्रतिशत उत्पाद घट जाता है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि जब धान में बाली आने लगे तो 500 मिली लीटर प्रोपीकोनाजोल को लगभग 400 लीटर पानी में घोल लें और प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क दें। अगर बालियों में दाने की जगह कंडुआ दिखाई दें तुरंत बालियों को सावधानी से तोड़कर थैलियों में भरकर मिट्टी में गाड़ दें। इससे बीजाणु हवा में उड़ नहीं पायेंगे। इस तरह धान की फसल कंडुआ रोग से बच सकती है।