परीक्षाएं….
शानदार बचपन बीत जाने के बाद
पढ़ाई पढ़ना… एक कठिन काम है
हर बात पर टुकाई… और….
समय-समय पर जमकर ठुकाई,
उन दिनों…. आम बात होती है…
पढ़ाई के दौरान परीक्षाएं तो…
एक डरावना अनुभव ही होती है
परीक्षा परिणाम के समय तो,
जान ही निकलने की नौबत…
मित्रों…. जाने क्यों होती हैं…
साल भर में दो बार परीक्षाएं.. और
आते हैं दो बार परीक्षाफल…
वह भी…. पास या फेल….
अब क्या ही बताएं परीक्षा भी…
दो प्रकार की होती है,
लिखित और प्रयोगात्मक….
लिखित परीक्षाएं कहने को तो,
प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं… पर….
सच में तो…. कमीने मित्रों के बीच
बेईज्जती ही कराती हैं….
नकल करने से लेकर,
परीक्षाफल की कापी दिखाने तक
प्रयोगात्मक परीक्षाएं ही….
आनंद देती है… जो प्राप्तांक का…
प्रतिशत भी बढ़ाती हैं…..
हम अक्सर उत्सुक भी रहते है,
प्रयोगात्मक परीक्षाओं का
नंबर कोड देखने को….
भले ही परिणाम आने तक,
उसकी डिकोडिंग भूल जाते हैं…
और… परिणाम आने पर…..
कभी खुश होते हैं…
या फिर….
कभी अपनी किस्मत को
मन से गरियाते हैं…
मित्रों…. देखें तो युवावस्था का दौर
परीक्षाओं से ही गुजरता है…
नौकरी के लिए भी… हर व्यक्ति…
परीक्षाओं से गुजरता है….
पर मित्रों सच कहें तो.. जीवन में..
परीक्षाओं के भय से ही…
अभी हमारा समाज,
साफ-सुथरा है…. अन्यथा….
कूड़े-कचरे से भरा-पूरा है…
मित्रों… वास्तव में… परीक्षाएं तो…
जीवन में संघर्ष कर,
कुछ हासिल कर लेने का,
समाज को संदेश देती हैं….
और… समाज का… आसानी से…
परिवेश बदल देती हैं….
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
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