हाइकोर्ट ने कोटेदार के निरस्तीकरण आदेश को ठहराया सही, याचिका किया खारिज
उच्च न्यायालय लखनऊ ने 21 पन्नों का सुनाया ऐतिहासिक फैसला, भ्रष्टाचारियों में मचा हड़कम्प
उचित दर विक्रेता पर ईसी एक्ट का दर्ज हुआ था मुकदमा, सांठ-गांठ से लगी थी फाइनल रिपोर्ट
अनुभव शुक्ला
रायबरेली। कहावत है कि सच्चाई छिप नहीं सकती झूठे वसूलों से! खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से!! जी हां, यह दो लाइन की पंक्तियां इस मामले में बिल्कुल शत—प्रतिशत सही चरितार्थ साबित हो रही है। भ्रष्टाचारियों का एक ऐसा जत्था जिसमें सरकारी मशीनरी को चकमा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हद तो तब पार हुई जब भ्रष्टाचार के अभिलेखीय पुलिंदा होने के बावजूद जिला स्तर ही नहीं, बल्कि उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ में भी कई महीनों तक सभी को सही साबित करने के लिए उच्च अधिकारियों को काफी जहमत उठानी पड़ी। पूरा मामला सलोन तहसील क्षेत्र के बिसइया गांव से जुड़ा हुआ है जहां बीती 2022 को खाद्यान्न घोटाले में उचित दर विक्रेता की दुकान निलंबन के बाद उच्च अधिकारियों ने निरस्त कर दिया था जिसके बाद सांठ-गांठ का खेल चला और जांच टीम में शामिल टीम का बिना बयान लिए और ग्रामीणों के कुछ कूटरचित शपथ पत्रों को आधार बनाकर अभियोजन के लिए फाइनल रिपोर्ट भेज दी गई थी जहां से डीएम कार्यालय पर फाइल पहुंचने के बाद फाइल में तत्कालीन बाबू रहे बाल जी विद्यार्थी पर फर्जी हस्ताक्षर के आरोप लगे जिसमें अभियोजन के आदेश के नीचे कृते जिलाधिकारी लिखकर हस्ताक्षर हुआ था।
ग्रामीणों ने साक्ष्य सहित डीएम को शिकायती पत्र देते हुए यह बताया कि तत्कालीन जिलाधिकारी का कूटरचित व फर्जी हस्ताक्षर बनाकर दीवानी न्यायालय में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी गई और इसी फाइनल रिपोर्ट को लेकर निरस्त कोटेदार ने कार्यवाही करने वाले उच्चाधिकारियों को पार्टी बनाकर हाइकोर्ट खंड पीठ लखनऊ में रिट याचिका दाखिल कर दी। हुआ यूं कि हाई कोर्ट में पड़ी रिट याचिका संख्या 8449 पर स्थगनादेश पारित कर दिया गया था जिसके बाद से लगातार निरस्त कोटेदार राय साहब सिंह दुकान बहाली को लेकर विभिन्न स्तरों पर शिकायती पत्र देकर दुकान बहाली की मांग करता रहा। कई महीने चले संघर्ष में चले अभिलेखीय उत्तर प्रति उत्तर के बाद प्रमुख सचिव का हाइकोर्ट ने पर्सनल एफिडेविड मांग लिया तो वर्तमान डीएम हर्षिता माथुर भी एक्शन मोड में आ गई और सीओ सलोन वंदना सिंह व एसडीएम ऊंचाहार की संयुक्त टीम से मामले की जांच करवाई तो जांच में प्रथम दृष्ट्या फर्जी हस्ताक्षर में शामिल लोग दोषी पाए जाने की चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।
वहीं दूसरी जांच सीओ सिटी अमित सिंह के स्तर से जारी ही थी कि उधर हाईकोर्ट लखनऊ की बेंच में लगभग एक घंटे चले बहस के बाद न्यायप्रियता से चर्चित न्यायाधीश अब्दुल मोइन ने 21 पन्ने का एतिहासिक फैसला सुनाते हुए राय साहब सिंह बनाम सरकार आपूर्ति विभाग आदि रिट याचिका संख्या 8449 को खारिज कर दिया। अब देखना यह है कि तत्कालीन डीएम के फर्जी हस्ताक्षर में शामिल दोषियों पर कार्यवाही की जायेगी या फिर जांच की आंच में इतने गम्भीर मामले को दफन कर दिया जायेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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