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डलमऊ गंगा घाट पर श्रद्धालुओं ने डाला डेरा, शाही स्नान की पूरी हुई तैयारी

डलमऊ गंगा घाट पर श्रद्धालुओं ने डाला डेरा, शाही स्नान की पूरी हुई तैयारी

पंकज मिश्रा
डलमऊ, रायबरेली। स्थानीय कस्बे में ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा मेला रविवार से प्रारंभ हो चुका है। श्रद्धालुओं का आगमन होने लगा है। पतित पावनी मां गंगा के दरबार में शाही स्नान करने के लिए दूर दराज से एवं विभिन्न जनपदों से श्रद्धालुओं का आगमन प्रारंभ हो चुका है। आज के इस नए दौर पर विभिन्न प्रकार के वाहनों एवं संसाधनों को छोड़कर श्रद्धालु आज भी ऐतिहासिक महत्त्व की परंपरा को संजोए हुए हैं। श्रद्धालुओं के पूर्वजों द्वारा बैलगाड़ियों से गंगा स्नान करने की प्रथा आज भी बरकरार है। श्रद्धालु आज भी विभिन्न प्रकार के संसाधनों को त्याग कर विभिन्न जनपदों से बैलगाड़ियों से गंगा स्नान करने के लिए पूर्णिमा से एक दिन पूर्व ही पहुंच कर मां गंगा से अपनी पीड़ा, मन्नतें तथा अनेक प्रकार की अर्जियाँ तट पर श्रद्धालु आकर लगाते है। इसके बाद ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा में लगे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रदर्शनी सहित आदि मनोरंजन कार्यक्रमों का लुफ्त उठाते हैं। इसके बाद मध्यरात्रि से स्नान करने का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है।

आस्था के सामने झुक जाते हैं भगवान
जी हां, आस्था के सामने भगवान को भी झुकना पड़ता है यह बात सही है। ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा मेले में विभिन्न संसाधनों को त्याग कर सैकड़ों किलोमीटर से दूर श्रद्धालु अपने परिवार सहित एक बैल गाड़ी में सवार होकर आते हैं जिसमें खाने पीने के सामान के साथ पशु आहार भी रहता है।

सैकड़ों किलोमीटर दूर चलने वाले तथा सैकड़ों किलो का बोझ उठाने वाले पशु भी इस कार्तिक पूर्णिमा मेले में अपनी आस्था को भली भांति प्रदर्शित करते हैं लेकिन इनकी इस भक्ति में आस्था को शायद भी कोई देख सकता हैं। कई किलो का बोझ उठाने वाले तथा सैकड़ों किलोमीटर चलने वाले बैलगाड़ी में सवार पशु के पैरों से चलते चलते रक्त भी बहने लगता है लेकिन उनकी भक्तिमय लीन आस्था आज तक कम नहीं होती। गंगा तट पर पहुंचते पहुंचते बैलगाड़ी सवार पशु लंगड़ाते लंगड़ाते गंगाजल के स्पर्श करते ही उनकी अनेक प्रकार के कष्ट पल भर में नष्ट हो जाते हैं जिसका जीता जागता उदाहरण आज भी बैल गाड़ियों में सवार पशुओं मे देखा जा सकता है।

आज भी जीवित है परिक्रमा करने की परम्परा
डलमऊ कस्बे में ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा मेला प्रारंभ हो चुका है जिसमें दूर दराज से श्रद्धालुओं का आगमन होने लगा है। रविवार को बेला भेला से परिक्रमा करते हुए श्रद्धालु 3 दिनों की यात्रा में डलमऊ पहुंचे जहां उन्होंने पतित पावनी मां गंगा के दर्शन कर अपने जीवन को कृतार्थ बनाया।

श्रद्धालुओं की मानें तो शाही पूर्णिमाओ पर कई किलोमीटर दूर परिक्रमा करने से मनुष्य अनेक प्रकार की बीमारियों एवं कष्टों से मुक्त हो जाता है तथा उसके सभी बिगड़े काम बनने का रास्ता साफ हो जाता है। यही नहीं, मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति करता है। परिक्रमा करने से मनुष्य को उक्त फायदे होते हैं जिसको लेकर आज की नई पीढ़ी पुरानी परंपराओं को संजोए हुए हैं एवं उन्हीं के विचारों वह पदचिन्हों पर आज की नई पीढ़ी चलने का प्रयास कर रही है। बताया जाता है कि परिक्रमा ईश्वर प्राप्ति का दूसरा रास्ता है जिसे श्रद्धालु पूर्वजों से चली आ रही परंपरा को भली-भांति निभाते चले आ रहे हैं।

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