अरूण कुमार गुप्ता ने खोजी प्राचीन प्रतिमाएँ
चन्दौली। जिले के साहबगंज कस्बे के अतायस्तगंज ग्राम के खेतों के मध्य से कस्बा निवासी व प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के परास्नातक पुरातन छात्र अरूण कुमार गुप्ता ने ललितासन मुद्रा में माहेश्वर, अनेकों बड़े छोटे शिवलिंग, प्रणाल, उमा की प्रतिमा, अलंकृत स्तम्भ, मृणठप्पा इत्यादि अनेकों खण्डित बलुए प्रस्तर निर्मित प्रतिमाएँ खोजा है। जिसकी पहचान प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. विनोद कुमार जायसवाल व दृश्य कला संकाय के प्रो. शान्ति स्वरूप सिन्हा ने किया है।
डा. विनोद के अनुसार ललितासन मुद्रा में माहेश्वर की खण्डित प्रतिमा जिनका दाहिना पैर नन्दी के पीठ पर है जो अपने आराध्य देव शिव को भक्तिभाव से देख रहा है। बायाँ पैर एक पिठिका पर है चूंकि कटि से ऊपर का भाग खण्डित है किन्तु बायी ओर माहेश्वर के मुद्रा व खण्डित भाग के कारण कहा जा सकता है कि इनकी अर्धांगिनी उमा रही होंगी। एक अन्य खण्डित प्रतिमा जिनके किरिट करण्ड (केश), कुण्डल, स्त्रियोचित चेहरा, भाव भंगिमा, बाये हाथ में दर्पण लिए एक देवी अर्थात पार्वती की प्रतिमा हो सकती है जिनके बायी शिरे पर मालाधारी गंधर्व विचरण कर रहा है।
दूसरे खण्डित प्रतिमा जो कटि से लेकर घुटने तक है यह विशिष्ट अलंकरण से युक्त है। इसका अंगविन्यास सिधा है अतः किसी देवी की है न कि अप्सरा आदि की। इसके अलावा एक बड़ा सा छिद्रयुक्त अरघा है, जिसमें शिवलिंग को स्थापित किया गया है तथा कई छोटे-छोटे अरघायुक्त शिवलिंग भी मिले हैं। इस प्रकार यह सम्पूर्ण खण्डित प्रतिमाएँ किसी शिव मंदिर के भग्नावशेष प्रदर्शित कर रहे हैं जिसमें उमा-माहेश्वर की पूजा अर्चना होती थी।
प्रतिमाओं के निर्माण शैली, अलंकरण, प्रतिमाशास्त्री अंकनांें, लक्षणों के आधार पर इसे 9वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य कालखण्ड का कहा जा सकता है जिसे मुगलों के समय हिन्दू मंदिरों के तहस नहस अभियान के समय यह भी कालकवलित हुआ। शेष भग्नावशेषों के विस्तृत विवरण व निष्कर्ष हेतु स्थानीय सर्वेक्षण व अवलोकन अपेक्षित है।