Article : पृथ्वी झुकी है | TEJASTODAY

Article : पृथ्वी झुकी है | TEJASTODAY

Article : पृथ्वी झुकी है | TEJASTODAY     कितने ही खरबों वर्ष से गतिशील है पृथ्वी और कितने ही खरबों वर्ष रहेगी अस्तित्व में अनंत आकाशगंगाओं में उपस्थित एक यह भी कर रही परिक्रमा सूर्य का और घूम रही अपनी धुरी पर जैसे घूम रहे अन्य ग्रह और उनके उपग्रह निरंतर अपनी ही अकड़ में पौरुष वर्चस्व को रेखांकित करते अकड़ नहीं पृथ्वी में, सहनशील और विनम्र वह झुकी अपने अक्ष पर साढ़ॆ तेईस अंश अक्षांश यूँ तो मंगल और यूरेनस भी झुके हैं किंतु झुकने से मिली ऋतुओं की सौगात सिर्फ पृथ्वी को जीवन का होना संभव हो सका सिर्फ पृथ्वी पर घिर-घिर आती बदली, आच्छादित होता है अंबर ओढ़ लेती है पृथ्वी खुशी-खुशी हरी चूनर महासागरों का दुपट्टा बना लहराती-इठलाती हवाओं को साड़ी की तरह तन पर लपेटे रहती करती विचरण गुप-चुप तीन सौ पैंसठ दिन क्रोध में उगलती कभी-कभार अनिच्छाओं के ज्वालामुखी और भूकंप को यथासंभव दबाये रखती रजस्वला होने तक एकमात्र 'पृथ्वी' में ही है स्‍त्रैण का बोध शेष सभी तो पुरुषोचित नाम ठहरे सौरमंडल में सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण अपने पौरुष के चलते पसंद नहीं झुकना, विनम्र होना कि पिद्‍दी प्‍लूटो को कर दिया गया ग्रहों की बिरादरी से बाहर सहनशील बनी वह झेलती है भार, बोझ उठाते हुए पृथ्वी झुकी है अपने अक्ष पर, झुकना सिखाते हुए। युवा लेखिका शुचि मिश्रा जौनपुर

कितने ही खरबों वर्ष से गतिशील है पृथ्वी
और कितने ही खरबों वर्ष रहेगी अस्तित्व में
अनंत आकाशगंगाओं में उपस्थित एक यह भी
कर रही परिक्रमा सूर्य का और घूम रही अपनी धुरी पर
जैसे घूम रहे अन्य ग्रह और उनके उपग्रह निरंतर
अपनी ही अकड़ में पौरुष वर्चस्व को रेखांकित करते

अकड़ नहीं पृथ्वी में, सहनशील और विनम्र वह
झुकी अपने अक्ष पर साढ़ॆ तेईस अंश अक्षांश
यूँ तो मंगल और यूरेनस भी झुके हैं
किंतु झुकने से मिली ऋतुओं की सौगात सिर्फ पृथ्वी को
जीवन का होना संभव हो सका सिर्फ पृथ्वी पर
घिर-घिर आती बदली, आच्छादित होता है अंबर
ओढ़ लेती है पृथ्वी खुशी-खुशी हरी चूनर
महासागरों का दुपट्टा बना लहराती-इठलाती
हवाओं को साड़ी की तरह तन पर लपेटे रहती
करती विचरण गुप-चुप तीन सौ पैंसठ दिन
क्रोध में उगलती कभी-कभार अनिच्छाओं के ज्वालामुखी
और भूकंप को यथासंभव दबाये रखती रजस्वला होने तक

एकमात्र ‘पृथ्वी’ में ही है स्‍त्रैण का बोध
शेष सभी तो पुरुषोचित नाम ठहरे सौरमंडल में
सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण
अपने पौरुष के चलते पसंद नहीं झुकना, विनम्र होना
कि पिद्‍दी प्‍लूटो को कर दिया गया ग्रहों की बिरादरी से बाहर
सहनशील बनी वह झेलती है भार, बोझ उठाते हुए
पृथ्वी झुकी है अपने अक्ष पर, झुकना सिखाते हुए।

युवा लेखिका शुचि मिश्रा जौनपुर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Read More

Recent