Article : हंस उड़ा अकेला…. | #TEJASTODAY
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हंस उड़ा अकेला…. | #TEJASTODAY
यह जो….
जगत और जगत व्यवहार है ….
कहते हैं…
चार दिनों का मेला है…
किसी ने देखा है क्या …???
यह मेला अकेला ही अकेला ..
सच तो यह है कि….
हर तरफ है रेली-रेला …
धक्कम-धुक्की ठेली-ठेला…
ताना देते लोग यहां …
खाते पत्थर ढेला….!
खाते पत्थर ढेला….!!
इस भव सागर में….
जिसने जमकर खेला खेला…
ताल ठोक कर …..
जिसने सुख दुख दोनों झेला….
रहा वही अलबेला ….
छाती पीट जो भी खेला….
साधु बना ना मौला….
गुरु हुआ ना चेला….
आई जब …..
चली-चला की बेला….
उतरा सब का चोला…
रहा हाथ ना एको धेला …
माया गठरी भूल यहीं पर…
हंस उड़ा अकेला ..!
हंस उड़ा अकेला…!!
रचनाकार- जितेन्द्र कुमार दूबे
पुलिस, उपाधीक्षक, सदर-जौनपुर।